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________________ ४६८ ) छक्खंडागमे संतकम्म पुण णिग्गमादो असंखे० भागुत्तरो। तदो धुवबंधोणं णामपयडोणं जदा जसकित्ती बज्झदि तदा आगमो थोवो, णिग्गमो बहुओ। जदा जसकित्ती ण बज्झदि तदा णिग्गमो थोवो, आगमो बहुओ । एदेण कारणेण णामस्स पयडीणं णत्थि अवट्ठाणं । एदेणेव हेदुणा पुरिसवेद-भय-दुगुंछाणं पि अवट्ठाणाभावो परूवेयव्यो । एदेहि दोहि उवदेसेहि भुजगार-पद-णिक्खेव-वढिसंकमेसु सामित्तमप्पाबहुगं कायव्वं । णिरयगइणामाए उक्कस्तिया वड्ढी कस्स? जो गुणिदकम्मंसियो सव्वसंकमेण चरिमफालि संकातओ तस्स उक्कस्सिया वड्ढी। उक्क० हाणी कस्स ? जो गुणिदकम्मसियो पढमवारं चेव उवसमसेडिमारूढो चरिमसमयसुहुमसापराइयो संतो मदो देवो जादो तस्स पढमसमयदेवस्स उक्क० हाणी। अवट्ठाणं पत्थि । तिरिक्खगदिणामाए णि यगइभंगो। मणुसगइशामाए उक्कस्सिया वड्ढी कस्स? जो सत्तमाए पुढवीए रइयो गुणिदकम्मंसियो तेत्तीसं सागरोवमाणि सम्मतमणुपालेदूण सव्वणिरुद्ध काले सेसे मिच्छत्तं गदो, तदो उव्वट्टियस्स- पढमसमयतिरिक्खस्स उक्कस्सिया पदेससंकमवड्ढी । मणुसगइणामाए उक्कस्सिया हाणी कस्स? जो रइयो गुणिदकम्मंसियो तेत्तीसं सागरोवमाणि सम्मत्तमणुपालेयूण सव्वणिरुद्धकाले सेसे मिच्छत्तं गदो तस्स पढमसमयमिच्छाइट्ठिस्स उक्क० हाणी । अवट्ठाणं णस्थि । आगम निर्गमकी अपेक्षा असंख्यातवें भागसे अधिक होता है। इस कारण ध्रुवबन्धी नामप्रकृतियोंका जब यशकीर्ति बंधती है तब आगम स्तोक और निर्गम बहुत होता है । तथा जब यशकीर्ति नहीं बंधती है तब निर्गम स्तोक और आगम बहुत होता है। इस कारण नामप्रकृतियोंका अवस्थान नहीं है। इसी हेतुसे पुरुषवेद, भय और जुगुप्साके भी अवस्थानके अभावकी प्ररूपणा करनी चाहिये। इन दो उपदेशोंके अनुसार भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धिसंक्रममें स्वामित्व व अल्पवहुत्वका कथन करना चाहिये। ____ नरकगति नामकर्म की उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गणितकर्माशिक सर्वसंक्रम द्वारा अन्तिम फालिको संक्रान्त कर रहा है उसके उसकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकौशिक प्रथम वार ही उपशम श्रेणिपर आरूढ होकर अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक होता हुआ मरणको प्राप्त होकर देव हुआ है उस प्रथम समयवर्ती देवके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है। अवस्थान उसका नहीं है। तिर्यग्गति नामकर्मकी प्ररूपणा नरकगतिके समान है। मनुष्यगति नामकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो सातवीं पृथिवीका गुणितकर्माशिक नारकी तेतीस सागरोपम काल तक सम्यक्त्वका पालन कर सर्वनिरुद्ध कालके शेष रहनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ है, तत्पश्चात् वहांसे निकलकर जो तिर्यंच हुआ है, उस प्रथम समयवर्ती तिर्यंचक उसकी उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमवृद्धि होती है। मनुष्यगति नाम कर्मका उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो नारकी गुणितकर्माशिक तेतीस सागरोपम काल तक सम्यक्त्वका पालन कर सर्वनिरुद्ध कालके शेष रहनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ है उस प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है । अवस्थान उसका नहीं है । * अ-काप्रत्यो: “उवट्ठयस्स', ताप्रतो : उवठ्ठियस्स' इति पा': । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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