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________________ ४६४ ) छक्खंडागमे संतकम्मं तस्स पढमसमयसम्माइट्ठिस्स उक्क० हाणी । उक्कस्समवद्वाणं मदिआवरणउक्कस्सा वाणतुल्लं अटुण्णं कसायाणं उक्क० वड्ढी कस्स ? जो गुणिदकर मंसियो सव्वसंकमेण चरिमफालि संका मेंतओ तस्स उक्क० aढी । दुम्सि कोहस्स उक्क० हाणी कस्स ? जो गुणिदकम्मं सियो उवसम सेढिमारुहिय दुविहे कोहे चरिमसमयअणुवसंते तदो से काले मदो तस्स पढमसमयदेवस्स उक्क० हाणी । दुविहमाण- माया-लोहाणं हाणीए दुविहकोहभंग | अट्टणं कसायाणमुक्कस्समवद्वाणं मदिआवरणअवट्ठाणतुल्लं Q । कोहसंजलणाए उक्क ० वड्ढी कस्स? जो गुणिदकम्मंसियो सव्वसंकमेण चरिमफालि संका मेंतओ तस्स उक्क वड्ढी । तस्सेव से काले उक्क०हाणी । उक्कस्समवट्ठाणं हाणीए किसके होती है ? जो गुणितकमांशिक सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है उस प्रथम समयवर्ती सम्यग्दृटिके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है । उनके उत्कृष्ट अवस्थानका कथन मतिज्ञानावरणके उत्कृष्ट अवस्थानके समान हैं। आठ कषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक सर्वसंक्रम द्वारा अन्तिम फालिको संक्रान्त कर रहा है उसके आठ कषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। दो प्रकार ( अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण ) क्रोधकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक उपशमश्रेणिपर आरूढ होकर दो प्रकारके क्रोधके अनुपशान्त रहनेके अन्तिम समय पश्चात् अनन्तर कालमें मरणको प्राप्त हुआ है उस प्रथम समयवर्ती देवके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है। दो प्रकारके मान, माया और लोभकी हानिकी प्ररूपणा दो प्रकार के क्रोध के समान है । आठ कषायोंके उत्कृष्ट अवस्थानकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके अवस्थानके समान है । संज्वलन क्रोधकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गुणितकर्मांशिक सर्वसंक्रम द्वारा अन्तिम फालिको संक्रान्त कर रहा है उसके उसकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उसी के अनन्तर काल में उसकी उत्कृष्ट हानि होती है । उत्कृष्ट अवस्थान हानिमें करना चाहिये। जैसे संज्वलन क्रोधकी E अनंता बंत्रीण मुक्कस्सियावड्ढी कस्स ? गुणिदकम्मंसियस्स सव्वसंकामयस्स । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? गुणिदकम्मंसिओ तप्पाओग्गउक्कस्सयादो अधापवत्तसक्रमादो सम्मत्तं पडिवज्जिऊण विज्झादसंकामगो जादो । तस्स पढमसमयसम्माइट्ठिस्स उक्कस्सिया हाणी । उक्कस्सयमवद्वाणं कस्स ? जो अधावत्तसंकमेण तप्पा - अग्गुक्कस्सएण वडिण अवट्ठिदो तस्स उक्कस्सयमवठाणं । क. पा. सु पृ. ४४७, ५४१-४६ अकसायाण मुक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? गुणिदकम्मंसियस्स सव्वसंकामयस्स | उकास्सिया हाणी कस्स ? गुणिक मंसियो पढमदाए कसायउवसामणद्धाए जाधे दुविहस्स को हस्स चरिमसमयसंकामगा जादो । तदो से काले मदो देवो जादो । तस्स पढमसमयदेवस्स उक्कस्सिया हाणी । एवं दुविहमाण दुविहमाया दुविहलोहाणं । वरि अप्पप्पणो चरिमसमयसंकामगो होदूण से काले मदो देवो जादो । तस्स पढमसमयदेवस्स उक्कस्सिया हाणी । अहं कसायाणु मुक्कस्पयमवठाणं कस्स ? अधापवत्तसंक्रमेण तप्पा ओग्ग उक्कस्सएण वड्डियूण से काले अदिकामगो जादो । तस्स उक्कल्सयमवद्वाणं । क. पा सु. पृ. ४४७, ५४७ - ५४, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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