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________________ संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो ( ४६३ पडिवण्णो, तस्स जाधे उक्कस्सिया वड्ढी आवलियमइक्कंता ताघे उक्कस्सिया मिच्छत्तस्स पदेससंकमवड्ढी। तिस्सेव से काले उक्कस्समवट्ठाणं । सम्मत्तस्स उक्क० वड्ढी कस्स ? जो उक्क० कम्मेण मिच्छत्तं गदो, तदो सव्वरहस्सेण उव्वेलणकालेण सम्मत्तमुवेल्लेदि, तस्स अपच्छिमट्टिदिखंडयस्स चरिमसमए उक्क० वड्ढी। उक्क० हाणी कस्स ? जो उक्कस्सएण कम्मेण मिच्छत्तं गदो तस्स दुसमयमिच्छाइट्ठिस्स उक्क० हाणी । अवट्ठाणं णत्थि त्ति । सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्सवड्ढि-हाणीणं मिच्छत्तस्स वड्ढि-हाणिभंगो। अवट्ठाणं णत्थिः । अणंताणुबंधोणं उक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? गुणिदकम्मंसियस्स सव्वसंकमेण चरिमफालि संकातस्स । उक्क० हाणी कस्स? जो गुणिदकम्मंसियो सम्मत्तं पडिवण्णो उसके जब उत्कृष्ट वृद्धि आवली अतिक्रान्त होती है तब मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमवृद्धि होती है । उसी में उसका अनन्तर कालमें अवस्थान होता है । सम्यक्त्व प्रकृतिकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो उत्कृष्ट सत्कर्मके साथ मिथ्यात्वको प्राप्त होकर पश्चात् सबसे थोडे उद्वेलनकालमें सम्यक्त्वकी उद्वेलना करता है उसके अन्तिम स्थितिकाण्डकके अन्तिम समयमें उसकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उसकी उन्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो उत्कृष्ट सत्कर्मके साथ मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ है उस द्वितीय समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है । अवस्थान उसका नहीं है । सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि और हानिकी प्ररूपणा मिथ्यात्वकी वृद्धि और हानिके समान है। अवस्थान उसका नहीं है। अनन्तानुबन्धी कषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? उसकी उत्कृष्ट वृद्धि सर्वसंक्रम द्वारा अन्तिम फालिको संक्रान्त करनेवाले गुणितकमोशिकके होती है। उनकी उत्कृष्ट हानि मिच्छ तस्स उकस्सिया वडढी कस्स ? गणिदकम्मंसियस्स मिच्छत्तख वयस्स सव्वसंकामयस्स । उक्तस्सिया हाणी कस्स ? गुणिदकम्पंसियस्स सम्मतमुप्पाएदूण गुणसंकमेण संकाभिदूण पढमसमयविज्झादसकामयस्स । उक्कस्सयमवट्ठागं कस्स? गणिदकम्मसिओ पुबुप्पण्णे ग सम्मतेण मिच्छत्तादो सम्पत्तं गदो तं दुसमयसम्माइट्ठिमादि कादूण जाव आवलियसम्माइट्टि ति एत्थ अगदरम्मि समये तप्पाओग्गउक्कस्सेण वर्दि कादूग से काले तत्तियं संकामयमाणस्त तस्स उकास्सयमवट्ठाणं। क. पा. सु पृ ४४५ ५२६-३१. ४ ताप्रतौ 'उज्वेलणकाले (ण)' इति पाठः । * सम्मत्तस्स उक्कस्मिया वड्ढी कस्स ? उज्वेल्नमाणयस्स चरिमसमए । उक्कस्सिया हाणी कस्स? गणिदकम्मंसिगे सम्मतमुपाएदूग लहं मिच्छतं गओ। तस्स मिच्छाइट्रिस्स पढमसमए अवत्तव्वसंकमो, बिदियसमए उक्कस्सिया हाणी। क पा सु. पृ ४४६, ५३२-३५. सम्मामिच्छत्तस्स उक्क्रस्सिया वड्ढी कस्स? गणिदकम्मंसियस्स सव्वसंकामयस्स । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? उप्पादिदे सम्मत्ते सम्मामिच्छत्तादो सम्मत्ते जंगकामेदि तं पदेसम्गमंगुलस्सासंखेज्जभागपडिभागं । गणिदकम्मंसिओ सम्तमुप्पाएदूण लहुं चेव मिच्छत्तं गदो जहणियाए मिच्छत्तद्धाए पुण्णाए सम्मत्तं पडिवण्णो। तस्स पढमसमयसम्माइट्टिस्स उक्कस्सिया हाणी। क. पा. सु. ५.४४६, ५३६-४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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