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________________ ४६२) छक्खंडागमे संतकम्म तहा वत्तव्वं । सादस्स उक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो कसाए तिखुत्तमुवसामेदूण चउत्थवारमुवसातो चरिमसमयसुहुमसांपराइयो जादो, तदो मदो देवो जादो, तस्स आवलियतब्भवत्थस्स देवस्स उक्क० वड्ढो। एदिस्सेव से काले उक्क० हाणी। अवट्ठाणं णत्थि । असादस्स उक्क० वड्ढी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो खवगसेडिमारुहिय चरिमसमयसुहमसांपराइयो जादो तस्स उक्क० वड्ढी। उक्क० हाणी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो उवसमसेडिमारुहिय सुहुमसांपराइयो जादो से काले मदो तस्स पढमसमयदेवस्स उक्क० हाणी। अवट्ठाणं णत्थि । मिच्छत्तस्स उक्क० वड्ढी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो मिच्छत्तस्स चरिमफालि सव्वसंकमेण सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तेसु संकातओ तस्स उक्क० वड्ढी । उक्क० हाणी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो गहिदपढमसम्मत्तो सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणि उक्कस्सगुणसंकमेण पूयि से काले विज्झादसंकमं गदो तस्स उक्क० हाणी। उक्कस्समवढाणं कस्स? जो पुव्वाइदेण सम्मत्तेण गुणिदकम्मंसियो उक्कस्साए जोगवड्ढीए वड्ढिदूण से काले जो समयपबद्धो तदो विसेसुत्तरे जोगट्टाणे पडिवदिदो, तदो से काले सम्मत्तं करना चाहिये। सातावेदनीयकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गुणितकौशिक कषायोंको तीन वार उपशमा कर चौथे वार उपशमाता हुआ अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसापराधिक होकर मरणको प्राप्त हो देव हुआ है, उस आवली कालवर्ती तद्भवस्थ देवके उसकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । इसीके अनन्तर कालमें उनकी उत्कृष्ट हानि होती है । अवस्थान नहीं होता। असातावेदनीयकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गुणितकौशिक क्षपकश्रणिपर आरूढ होकर अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसांपरायिक हुआ है उसके उसकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकौशिक उपशमश्रणिपर आरूढ होकर सूक्ष्मसांपरायिक होता हुआ अनन्तर समयमें मृत्युको प्राप्त हुआ है उसके प्रथम समयवर्ती देव होनेपर असातावेदनीयकी उत्कृष्ट हानि होती है । अवस्थान उसका नहीं होता। मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक मिथ्यात्वकी अन्तिम फालिको सर्वसंक्रम द्वारा सम्यक्त्व और सम्यग्यिथ्यात्वमें संक्रान्त रहा है उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक प्रथम सम्यक्त्वको ग्रहण कर सम्यक्त्व प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वको गुणसंक्रमके द्वारा पूर्ण करके अनन्तर काल में विध्यातसंक्रमको प्राप्त हुआ है उसके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है । उसका उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है ? जो गुणितकर्माशिक पूर्व आगत सम्यक्त्वके साथ उत्कृष्ट योगवृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त होकर अनन्तर कालमें जो समयप्रबद्ध है उससे विशेषाधिक थोगस्थानमें गिरता है, पशचत् जो अनन्तर कालमें सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है, 8 अ-काप्रत्योः 'उक्कस्सए' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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