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संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो
( ४५५ अप्पदर० जह० एगसमओ, उक्क० छावद्विसागरोवमाणि सादिरेयाणि । अवटिद० जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया* । सम्मत्तस्स भुजगार० जहण्णेण एगसमओ, उक्क० अंतोमुहत्तं । अप्पदर० जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। अवट्टिदसंकमो णत्थिई । सम्मामिच्छत्तस्स भजगार० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहत्तं । अप्पदर० जह० अंतोमु०, उक्क० बे-छावद्विसागरोवमाणि सादिरेयाणि*। ___ अणंताणुबंधीणं भुजगारकालो जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। अप्पदर०जह० एगसमओ, उवक० बे-छावढिसागरो०सादिरेयाणि । अवट्ठिद जह०एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया । बारसकसाय-भय-दुगुंछाणं मदिआवरणभंगो ।
अथवा एक समय कम आवली मात्र है। अल्पतर संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे साधिक छयासठ सागरोपम मात्र है। अवस्थित संक्रामकका काल जधन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय मात्र है । सम्यक्त्व प्रकृतिके भुजाकार संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। अल्पतर संक्रामकका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र है। उसका अवस्थित संक्रम नहीं होता । सम्यग्मिथ्यात्वके भुजाकार संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। अल्पतर संक्रामकका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे साधिक दो छयासठ सागरोपम मात्र है।
___ अनन्तानुबन्धिचतुष्टयके भुजाकार संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र है। अल्पतर संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे साधिक दो छयासठ सागरोपम मात्र है। अवस्थित संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय मात्र है। बारह कषाय, भय और जुगप्साकी प्ररूपणा
* मिच्छत्तस्स भुजगारसंकमो केवचिरं कालाटो होदि ? जहण्णेण एयसमओ उक्कस्सेण आवलिया समयूणा, अधवा अंतोमुहुत्तं । अप्पयरसंकमो केवचिर कालादो होदि ? एक्को वा समयो जाव आवलिया दुसमयूणा, अधवा अंतोमहुत्तं । तदो समयुत्तरो जाव छावद्धिसागरोवमाणि सादिरेयागि । अवट्रिदसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण एयसमओ । उक्कस्सेण संखेज्जा समया। अवत्तव्यसंकमो केवचिर कालादो होदि? जहण्णक्कस्सेण एयसमओ। क. पा. सु पृ. ४२७, २९९-३११
B सम्मत्तस्स भुजगारसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? जहणेग एयपमओ । उकस्सेण अंतोमहत्तं । अप्पयरसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णे ग अंतोमहतं । उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। अवत्तब्धसंकमो केत्रचिरं कालादो होदि ? जहण्णुककस्सेण एयसमयो । क. पा सु पृ ४२९, ३१२-१७.
सम्मामिच्छत्तस्स भजगारसंकमो केवचिरं कालादो होदि? एकको वा दो वा समया । एवं समयत्तरी उक्कस्सेण जाव चरिमुवेलणकंडयुक्कीरणा त्ति । अधवा सम्मत्तमप्पादेमागयस्स वा तदो खवेमाणयस्स वा जो गणसंकमकालो सो वि भुजगारसंकपायस्स कापब्वो। अपदरसंकामगो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णण अंतोमहत्तं । एयसमओ वा। उक्कस्सेण छावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । अवत्तवसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुक्कस्सेण एयसमओ। क. पा. सु. पृ. ४२९, ३२१-२८.
0 अणंताणुबंधीणं भुजगारसंकामगो केवचिरं कालादो होदि ? जहणेण एयसमओ। उक्कस्सेण पलिदोवमस्स Jain Education International For Private & Personal Use Only
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