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________________ ४२४ ) छक्खंडागमे संतकम्म खवगस्स अटकसायचरिमफालीए सव्वसंकमेण संकामेंतस्स। ___णqसयवेदस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? ईसाणे गुणिदकम्मंसियस्स इस्थिवेदेण पुरिसवेदेण वा सव्वलहुं खवणाए अब्भुट्टियस्स णqसयवेदचरिमफालि सत्वसंकमेण संकामेंतस्सः । इत्थिवेदस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो असंखेज्जावासाउएसु उववण्णो, सव्वरहस्सेण कालेण पलिदो० असंखे० भाएण पूरिदइत्थिवेदोतदो मदो जहणियाए देवद्विदीए उववण्णो, तदो चुदो सव्वरहस्सेण • कालेण खवणाए अन्भुट्टिदो, तदो तस्स जा इत्थिवेदचरिमफाली सव्वसंकमेण पुरिसवेदे संकमदि ताओ इत्थिवेदस्स उक्कस्तओ पदेससंकमो*। पुरिसवेदस्स? उक्कस्सओ पदेससंकमो उक्त आठ कषायोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। ___ नपुंसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकर्माशिक देव ईशान कल्पमें ( संवरेश परिणामसे एकेन्द्रिय प्रायोग्य बन्ध करता हआ नपंसकवेदको बार बार बांधकर वहांसे च्यत हो स्त्री अथवा पुरुष उत्पन्न होता है और तत्पश्चात मासपथक्त्व अधिक आठ वर्षोंके वीतनेपर ) स्त्री या पुरुषवेदके साथ सर्वलघ कालमें क्षपणामें उद्यत हो सर्वसंक्रम द्वारा नपुंसकवेदकी अन्तिम फालिको संक्रान्त करता है उसके नपुंसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। स्त्रीवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकौशिक असंख्यातवर्षायुष्क जीवोंमें उत्पन्न होकर सर्वलघु काल स्वरूप पल्योपमके असंख्यातवें भागमें स्त्रीवेदको पूर्ण करके मृत्युको प्राप्त होता हुआ जघन्य देवस्थिति ( दस हजार वर्ष ) के साथ देव उत्पन्न हुआ है, तत्पश्चात् वहांसे च्युत होकर सर्वलघु कालमें क्षपणामें उद्यत होकर जब वह स्त्रीवेदकी अंतिम फालिको सर्वसंक्रम द्वारा पुरुषवेदमें संक्रान्त करता है तब उसके स्त्रीवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है ? । विशेषार्थ-- यद्यपि तत्त्वार्थसूत्र आदि अधिकांश ग्रन्थोंमें भोगभूमियोंमे अकालमृत्यु (कदलीघातमरण) का प्रतिषेध किया गया है, तथापि कुछ आचार्य वहां अकालमरणको भी स्वीकार अट्ठण्हं कसायागमक्कस्सओ पदेसतंकमो कस्स ? गुणि दकम्ममिओ सबलहुँ म गुमग मागदो अट्ठवस्सिओ खवणाए अब्यूट्रिदो। तदो अट्टाह कमायाणमपच्छिमट्रिदिखंडयं चरिमसमयसछुहमाणयस्स तस्स अटुण्ह कसायाणमक्कस्सओ पदेससंकमो । क. पा सु पृ ४०३, ३१-३२. 48 अ-काप्रत्योः 'ईपाणे गुणियस्स ' ताप्रती 'ईमाणे गणि (दकम्मसि ) यस्स' इनि पाठः । Oणवंसयवेदस्स उक्स्स ओ पदेमरकमो कस्स ? गणिदकम्मंसिओ ईसाणादो आगदो सव्वलहं खवेदुमाढतो। तदो णवूसयवेदस्स अपच्छिमटिदिखंडयं चरिमसमयसंछभमाण यस्स तस्स णमयवेदस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो । क. पा सु पृ. ४०४,३८-३९. ईसाणागयपुरिसस्स इत्थियाए य अवसाए। मासपुधत्तमहिए नपुंसगे सब्वसंकमणे । क. प्र. २, ८४. * अकाप्रत्योः 'तदो बच्चदे सब्वरहस्सेण, ताप्रतो ' तदो बुच्चदे (चदो) सव्वरहस्सेण ' इति पाठः। * इत्थिवेदस्स उक्स्स ओ पदेससंकमो कस्स ? गणिदकम्मसिओ असंखेज्जवस्साउएसु इत्थिवेदं पूरेदूण तदो पूरिदकम्मं सिओ खवगाए अब्भट्रिनो तदो चरिमट्रिदिखंडयं चरिमसमयसंछहमागयस्स तस्स इत्थिवेदस्स उक्कस्सओ पदेस संकमो। क. पा सु. पृ. ४०४, ३४-३५. इत्थीए भोगभूमिसु जीविय वासाणसंखिपाणि तओ। हस्सठिई देवता सव्वलहं सब्बसंछोभे । क. प्र २-८५. ॐ अ-काप्रत्योः ‘पुरिसवेदयस्स' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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