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संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो
( ४२५ कस्स ? जेण ईसाणदेवेसु णवंसयवेदो पूरिदो, तदो ससंखेज्जवासाउएसुख इत्थिवेदो पूरिदो, तदो मदो जहण्णाए देवद्विदीए उववण्णो, तदो मदो मणुस्सो जादो, सव्वलहुं अण्णदरेण लिंगेण खवणाए अब्भुद्विदो, तेण जाव सव्वसंकमेण पुरिसवेदो संकामिदो ताव तस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो।
छण्णोकसायाणमुक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो सव्वलहुं खवणाए अब्भुट्टिदो, तेण जाधे सव्वसंकमेण छण्णोकसायाणं चरिमफाली संकामिदा ताधे तेसिमक्कस्सओ पदेससंकमो।। ___ कोधसंजलणाए उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स ? जो ईसाणदेवेसु णयंसयवेदं
करते हैं। इसी मतभदके अनुसार यहां भोगभूमियोंमें अपमृत्मको स्वीकार कर उपर्युक्त स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमको घटित किया गया है। यहां चूणिसूत्रकार यनिवृषभाचार्यका क्या अभिमत रहा है, यह ज्ञात नहीं होता; कारण कि उन्होंने 'असंखेज्जवस्साउएसु इत्यिवेदं पूरेदूण' इतना मात्र निर्देश किया है-पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र सर्वलघु कालका निर्देश नहीं किया । कर्मप्रकृति आदि श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें यह अभिमत अवश्य पाया जाता है । प्रसिद्ध टीकाकार आचार्य मलयगिरिने बतलाया है कि स्त्रीवेदका यह उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम इसी युक्तिसे बन सकता है, अत:इसी युक्तिका अनुसरण करना चाहिये ; क्योंकि, इसके अतिरिक्त अन्य युक्तियां चिरन्तन ग्रन्थोंमें देखी नहीं जातीं । यथा-- इहैवमेव स्त्रीवेदस्योत्कृष्टमापूरणमुत्कृष्टश्च प्रदेशसंक्रमः केवलज्ञानेनोपलब्धो नान्यथेत्येषेव यतिरत्रानसर्तव्या, न यक्वन्नराणि; यक्त्यन्तराणां चिरन्तनग्रन्थेष्वदर्शनतो निर्मूलतयाऽन्यथापि क मशक्यत्वात् । क प्र. २, ८५. )
पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जिसने ईशान कल्पके देवों में नपुंसक वेदको पूर्ण किया है, तत्पश्चात् असंख्यातवर्षायुष्कोंमें स्त्रीवेदको पूर्ण किया है, तत्पश्चात् मरणको प्राप्त होकर जो जघन्य देवस्थितिसे उत्पन्न हुआ है, और तत्पश्चात् मरणको प्राप्त होकर मनुष्य होता हुआ सर्वलघु कालमें अन्यन्तर लिंगके साथ क्षपणामें उद्यत होता है उसके जब तक सर्वसंक्रम द्वारा पुरुषवेद संक्रान्त होता है तब तक पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है।
छह नोकषायों का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणकर्माशिक सर्वलघु कालमें क्षपणामें उद्यत होकर जब सर्वसंक्रम द्वारा छह नोकषामोंकी अन्तिम फालिको संक्रान्त करता है तब उसके उनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है ।
संज्वलन क्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो ईशान कल्पके देवों में नपुंसक
0 अ-काप्रत्योः 'वासा उएसो' इति पाठः ।
४ पूरिसवेदस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? गुणिदकम्मंसिओ इस्थि-पुरिस-णवंसयवेदे पूरेदूण तदो सव्वलहुं खवणाए अन्भुटुिंदो, पुरिसचेदस्स अपच्छिमछिदिखंडयं चरिमसमयसंछुहमाणयस्स तस्स पुरिसवेदस्त उक्कस्सओ पदेससंकमो। क. प्र. सु प्र. ४०४, ३६-३७. परिसवरित्थि पूरिय सम्मत्तमसंखवासियं लहियं । गंता मिच्छत्तमओ जहण्णदेवट्टिई मोच्चा।। आगंतु लहुं पुरिग संछुभमाणस्स पुरिसवेयस्स । क. प्र. २,८६-८७
...वर्षवरो नपुंसकवेदः । मलय. Jain Education International For Private & Personal Use Only
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