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संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो पुढवीए रइयो गुणिदकम्मंसियो अंतोमुहुत्तसेसे सम्मत्तं पडिवण्णो, उक्कस्सेण गुणसंकमकालेण सम्मत्तमावूरिय मिच्छत्तं गदो, तस्स पढमसमयमिच्छाइट्ठिस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो० ।
अणंताणुबंधोणं उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? सत्तमपुढविणेरइयस्य गुणिदकम्मंसि. यस्स सव्वजहण्णमंतोमुत्तमेत्तमाउअं अस्थि त्ति अणंताणुबंधिचउक्कविसंजोजणमाढविय सव्वसंकमेण अंणंताणुबंधिचउक्कचरिमफालि संकामेंतस्स अट्ठकसायाणमुक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? गुणिदकम्मंसियस्स सव्वलहुं खवणाए अन्भुट्टियस्स अणियट्टि
आयुमें अन्तर्मुहूर्त शेप रहनेपर सम्यवत्वको प्राप्त हो उत्कृष्ट गुणसंक्रमकालमें सम्यक्त्वको पूर्ण करके मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ है उस प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके सम्यक्त्व प्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है।
अनन्तानुबन्धी कषायोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो सातवीं पृथिवीमें स्थित गुणितकौशिक नारकी जीव सर्वजघन्य अन्तर्मुहूर्त मात्र आयुके शेष रहनेपर अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी विसंयोजनाको प्रारम्भ करके सर्वसंक्रमण द्वारा अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी अन्तिम फालिको संक्रान्त कर रहा है उसके उनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । आठ कषायोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकर्माशिक अनिवृत्तिकरण क्षपक सर्वलघु कालम क्षपणामें उद्यत होकर आठ कषायोंकी अन्तिम फालिको सर्वसंक्रम द्वारा संक्रान्त कर रहा है उसके
भगहणाणि पचिदियतिरिक्वपज्जतएस उववण्णो अंतोमुत्तेण मणस्सेसु आगदो। सब्बलहं समोहणीयं खवेदुमाढत्तो, जाधे मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्ते संभमाणं संछद्ध साधे तस्स मिच्छ तस्स उस्सओ पदेससंकमो । क. पा. सु प ४०१, १९-२३. सम्मामिच्छत्तस्स उक्स्स ओ पदेससंकमो कस्स ? जेण मिच्छतस्स उक्कस्सपदेसग्ग सम्मामिच्छते पक्वित्तं, तेणेव जाधे सम्पामिच्छत्तं सम्मते संपक्खित्तं त'धे तस्स सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो । पृ. ४०२, २७-२८. संछोभणाए दोहं माहाणं वेयगस्स खणसेसे । उप्पाइय सम्मत्त मिच्छत्तगए तमतमाए । क. प्र. २-८२. क्षपकस्य दूयोर्मोहनीययोमिथ्यात्व-सम्पग्मिथ्यात्वरूपयोरात्मीयात्मीयचरमसंछ'भे सर्वसंक्रमेणोत्कृष्टः प्रदेशसंक्रमो भवति ।
४ सम्मत्तस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स ? गणिदकम्मसिएण सत्तमाए पुढवीय णेरइएण मिच्छत्तस्स उक्कस्सपदेससंतकम्ममंतोमहुत्तेण होहिदि त्ति सम्मत्तमुपाइदं, सबुक्कस्सियाए पूरणाए सम्मत्तं पूरिदं । तदो उवसंतद्धाए पुण्णाए मिच्छत्तमदीरयमाणस्स पढमसमयमिच्छाइट्ठिस्स तस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो। गो वुण अधाग्वत्तसंकमो। क पा. सु. प. ४०२, २४-२६ xxx वेयगस्स खणसेसे । उप्पाइय सम्मतं मिच्छत्तगए तमतमाए।। क प्र २,८२ तथा क्षणशेषेर्मुहविशेसे आयुषि तमस्तमाभिधानायां सप्तमपथिव्यां वर्तमान औपशमिक सम्यक्त्वमत्पाद्य दीर्घेण च गणसंक्रमकालेन वेदकसम्यक्त्वपुज्ज समापूर्य सम्धक्वात्प्रति तितो मिथ्यात्वं च प्रतिपद्य तत्प्रथमसमय एव वेदकसम्यक्त्वस्य मिथ्यात्वे उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमं करोति । (मलय).
क. पा सू प. ४०३, २९-३०. भिन्न मते सेसे तच्चरमावस्सगाणि किच्वेत्थ । संजोयणा विसंजोयगस्स संछोभणा एसि ॥ क. प्र. २-८३.
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