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________________ ४२२ ) छक्खंडागमे संतकम्म कम्मंसियस्स चरिमसमयसुहमसांपराइयस्स खवगस्स । थोणगिद्धितियस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? गुणिदकम्मंसियस्स अणियट्टिखवयस्स सव्वसंकमेण थीणगिद्धितियचरिमफालि संकातस्स* । सादस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? जो गुणिदकम्मंसियो सत्तमादो पुढवीदो मदो तिरिक्खो जादो, ताधे चेव सादं पबद्धं, तपाओग्गउक्कस्सियाए सादबंधगद्धाए गदो, पुणो असादं पबद्धं, तस्स आवलियादिक्कंतस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो । असादस्स णिद्दाभंगो। मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणं उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? गुणिदकम्मंसियस्स सव्वलहुं दसणमोहणीयं खवेंतस्स अणियट्टिकरणे सनसंकमेण मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणं चरिमफालीयो संकामेतस्स* । सम्मत्तस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? जो सत्तमाए किसके होता है ? वह गुणितकौशित चरम समयवर्ती सूक्ष्म साम्परायिक क्षपकके होता है। स्त्यानगद्धित्रयका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? वह सर्वसंक्रम द्वारा स्त्यानगृद्धि त्रयकी अन्तिम फालिको संक्रान्त करनेवाले गुणितकर्माशिक अनिवृत्तिकरण क्षपक के होता है । सातावेदनीयका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकौशिक सातवीं पृथिवीसे मरकर तिर्यंच हुआ है, जिसने उसी समयमें सातावेदनीयका बन्ध किया है, तथा जिसने तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट साताबन्धककालको विताकर फिर असातावेदनीयका बन्ध किया है, उसके बन्धावलीके वीतने पर उसका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । असातावेदनीयके प्रकृत स्वामित्वकी प्ररूपणा निद्राके समान है। मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? वह सर्वलघुकालमें दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करते हुए अनिवृत्तिकरण में सर्वसंक्रम द्वारा मिथ्यात्व और सम्यमिथ्यात्वकी अन्तिम फालियोंको संक्रान्त करनेवाले गणितकर्माशिकके होता है। सम्यक्त्व प्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो सातवीं पृथिवीका नारकी गुणितकर्माशिक * अप्रतो 'चरिमफाली संकमेतस्स', काप्रतौ' चरिमफालिसंकमोतस्स', ताप्रतो 'चरिमफालि (लिं) संकामेंतस्स' इति पाठः । कम्मचउक्के असुमाण' बज्झमाणीण सुहम खवग रागते । संछोमणम्मि नियगे चउवीसाए नियट्टिस्स ।। क. प्र. २-८०. कर्मचतुष्के दर्शनावरण-वेदनीय-नाम-गोत्रलक्षणे या अशुभाः सूक्ष्मसंपरायावस्थायामबध्यमानाः प्रकृतयो निद्राद्विकासातावेदनीय-प्रथमवर्जसंस्थान-प्रथमवजसंहननाशुभवर्णादिनवकोपघाताप्रशस्त-विहायोगत्यपर्याप्तास्थिराशुभ-दुर्भग-दुःस्वरानादेयायशःकीति-नीचैर्गोत्रलक्षणा द्वात्रिंशत् प्रकृतयस्तासां गणितकर्माशस्य क्षपकस्य सूक्ष्मसंपरायस्यान्ते चरमसमये उत्कृष्टः प्रदेशसंक्रमो भवति । तथाऽनिवृत्तिबादरस्य गुणितकांशस्य क्षपकस्य मध्यमकषायाष्टक-स्त्यानगृद्धित्रिक तियंग्द्विक-द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रियजातिसूक्ष्म-साधारणनोकषायषटकरूपाणां चतुर्विशतिप्रकृतीनां । २४ ) आत्मीय आत्मीये चरमसंछोभे चरमसंक्रमे उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमो भवति ।। मलय ). ॐ तत्तो अणंतरागयसमयादुक्कस्स सायबंधद्धं । बंधिय असायबंधालिगंतसमयम्मि सायस्स ।। क. प्र. २-८१. ततो नरकभवादनन्तरभवे समागतः ......। मलय. *मिच्छत्तस्स उक्कस्सपदेससंकमो कस्स ? गुणिक्कम्मंसिओ सतमादो पूढवीदो उव्व ट्रिदो दो तिपिण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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