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________________ संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो ( ४२१ असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अपुवकरणो ति ताव अधापवत्तसंकमो। मिच्छाइटिम्हि विज्झादसकमो, तत्थ बंधाभावादो*। ____ गुणसंकमेण संकमगाणस्स अवहारकालो थोवो । अधापवत्तसंकमेण संकामयंतस्स अवहारकालो असंखेज्जगुणो । विज्झादसंकमेण संकामयंतस्स अवहारकालो असंखे० गुणो । एदमप्पाबहुअं उक्कस्सपदेससंकमभागहाराणं, ण सव्वेसि; विज्झादसंकमभाग-- हारादो अधापवत्तभागहारस्स विसेसहीणत्तुवलंभादो। एवं कुदो णव्वदे? पच्चक्खाणलोभजहण्णसंकमदत्रादो केवलणाणावरणजहण्णसंकमदत्वं विसेसाहियं ति उवरिमभप्पाबहुगादो । उव्वल्लणसंकमेण संकामयंतस्स अवहारकालो असंखे० गुणो । एदमप्पाबहुअं एत्थ अवहारेयव्वं । एवं परूवणा समत्ता। एत्तो सामित्तं । तं जहा-- मदिआवरणस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो सत्तमादो पुढवीदो मदो तिरिक्खो जादो तदो तस्स आवलियतब्भवत्थस्स उक्कस्सगो मदिआवरणस्स पदेससंकमो । चदुणाणावरण-चदुदंसणावरण पंचंतराइयाणं मदिणाणावरणभंगो । णिद्दा-पयलाणं उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स ? गुणिद अपूर्वकरण तक अधःप्रत्तसंक्रम होता है । मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में उसका विध्यातसंक्रम होता है, क्योंकि, वहां उसका बन्ध नहीं होता। गुणसंक्रमके द्वारा संक्रान्त होने वाले प्रदेशाग्रका अवहारकाल स्तोक है। अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्वारा संक्रान्त होने वाले प्रदेशाग्रका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। विध्यातसंक्रमके द्वारा संक्रान्त होनेवाले प्रदेशाग्रका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । यह अल्पबहुत्व उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमभागहारोंका है, न कि सब भागहारोंका; क्योंकि, विध्यातसंक्रमभागहारसे अधःप्रवृत्तसंक्रमभागहार विशेष हीन पाया जाता है। शंका-- यह कहांसे जाना जाता है ? समाधान-- वह प्रत्याख्यानावरणलोभके जघन्य संक्रमद्रव्यसे केवलज्ञानावरणका जघन्य संक्रमद्रव्य विशेष अधिक है, इस आगे कहे जानेवाले अल्पबहुत्वसे जाना जाता है । उसकी अपेक्षा उद्वेलनसंक्रमसे संक्रान्त होनेवाले द्रव्यका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । इस अल्पबहुत्वका यहां अवधारण करना चाहिये । इस प्रकार प्ररूपणा समाप्त हुई । - यहां स्वामित्वकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है- मतिज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकौशिक सातवीं पृथिवीसे मरकर तिर्यंच हुआ है सके आवली कालवी तदभवस्थ होनेपर मतिज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। शेष चार ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तराय प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमके स्वामित्वकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है । निद्रा और प्रचलाका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम *ताप्रतौ 'तत्थ बंधामावादो' इत्येतावानयं पाठो नास्ति । अप्रतौ 'आवरण उक्कस्सओ' इति पाठः तत्तो उबट्टत्ता आवलिगासमयतब्भवत्थस्स । आवरण-विग्धचोद्द पगोरालियसत्त उक्को तो ॥क. प्र. २-७९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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