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छक्खंडागमे संतकम्म
उच्चागोदस्स मिच्छाइटिप्पहुडि जाव सासणसम्माइट्टि त्ति अधापवत्तसंकमो। उवरि असंकमो, पडिग्गहाभावादो। सत्तमपुढविणेरइएसु विज्झादसंकमो । तेउ-वाउकाइएसु उज्वेल्लणसंकमो, तत्थ उव्वेल्लणपाओग्गपरिणामाणमवलंभादो। चरिमुव्वेल्लणखंडए गुणसंकमो। तस्सेव चरिमफालीए सव्वसंकमो।
तिण्णिसंजलण-पुरिसवेदाणमधापवत्तसंकमो सव्वसंकमो चेदि दोण्णि संकमा होति । तं जहा- तिण्णं संजलणाणं पुरिसवेदस्स च मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति अधापवत्तसंकमो । चरिमखंडयचरिमफालीए एदासि सव्वसंकमो ।
हस्स-रदि-भय-दुगुंछाणं अधापवत्तसंकमो गुणसंकमो सव्वसंकमो चेदि तिणि संकमा होति । तं जहा- मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अपुव्वकरणचरिमसमयो त्ति एदासिमधापवत्तसंकमो। उवरि गुणसंकमो जाव चरिमट्ठिदिखंडयदुचरिमफालि त्ति । चरिमफालीए सव्वसंकमो।। ओरालियसरीर-ओरालियसरीरंगोवंग-वज्जरिसह-तित्थयराणमधापवत्तसंकमो विज्झादसंकमो चेदि दोण्णि संकमा।तं जहा-ओरालियदुग-पढमसंघडणाणं मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठि त्ति अधापवत्तसंकमो, तत्थ बंधदसणादो । असंखेज्जवासाउअतिरिक्ख-मणुस्सेसु विज्झादसंकमो तत्थ एदासि बंधाभावादो । तित्थयरस्स
उच्चगोत्रका मिथ्यादृष्टिसे लेकर सासादनसम्यग्दृष्टि तक अधःप्रवृत्तसक्रम होता है । आगे उसका संक्रम नहीं होता है, क्योंकि, प्रतिग्रह प्रकृतिका अभाव है । सातवी पृथिवीके नारकियोंमें उसका विध्यातसंक्रम होता है। तेजकायिक और वायुकायिक जीवोंमें उसका उद्वेलनसंक्रम होता है, क्योंकि, वहां उद्वेलनके योग्य परिणाम पाये जाते हैं । अन्तिम उद्वेलनकाण्डकमें गुणसंक्रम होता है । उसीकी अन्तिम फालिका सर्वसंक्रम होता है।
तीन संज्वलन और पुरुषवेदके अधःप्रवृत्तसंक्रम और सर्वसंक्रम ये दो संक्रम होते हैं । यथा- तीन संज्वलन कषायों और पुरुषवेदका मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिकरण तक अध:प्रवृत्तसंक्रम होता है । इनके अन्तिम काण्डककी अन्तिम फालिका सर्वसंक्रम होता है।
हास्य, रति, भय और जुगुप्साके अधःप्रवृत्तसंक्रम, गुणसंक्रम और सर्वसंक्रम ये तीन संक्रम होते हैं। यथा- मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरणके अन्तिम समय तक इनका अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है । आगे अन्तिम स्थितिकाण्डककी द्विचरम फालि तक गुणसंक्रम होता है । अन्तिम फालिका सर्वसंक्रम होता है ।
___औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, वज्रर्षभनाराचसंहनन और तीर्थंकर प्रकृतिके अधःप्रवृत्तसंक्रम और विध्यातसंक्रम ये दो संक्रम होते हैं । यथा औदारिकद्विक और प्रथम संहननका मिथ्यादृष्टि से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है, क्योंकि, वहांपर उनका बन्ध देखा जाता है । असंख्यातवर्षायुष्क तिर्यंचों और मनुष्योंमें इनका विध्यातसंक्रम होता है, क्योंकि, उनमें इनका बन्ध नहीं होता । तीर्थंकर प्रकृतिका असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर
अ-काप्रत्योः 'दोणिसंकमो' इति पाः।
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