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________________ ४१६ ) छक्खंडागमे संतकम्म संकमो। चरिमफालीए सव्वसंकमो । उवसमसम्माइट्टिम्हि य मिच्छत्तस्स विज्झादसंकमो। वेदगसम्मत्तस्स चत्तारि संकमा * अधापवत्तसंकमो उव्वेल्लगसंकमो गुणसंकमो सव्वसंकमो चेदि । तं जहा-मिच्छत्तं गदसम्माइट्रिमिह जाव अंतोमहत्तकालं ताव अधापवत्तसंकमो। तदो प्पहुडि जाव पलिदो० असंखे । भागमेत कालं ताव उज्वेल्लणसंकमो अंगुलस्स असंखे० भागपडिभागिगो। उन्वेलणचरिमखंडयपढमसमयप्पहुडि ताव गुणसंकमो जाव तस्सेव दुचरिमफालि ति । चरिमफालीए सव्वसंकमो । सम्मामिच्छत्त-देवगइ-देवगइपाओग्गाणुपुवी-णिरयगइ-णिरयगइपाओग्गाणुपुवी-वेउव्वियसरीर--वेउब्वियसरीरंगोवंग---मणुसगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुटवीआहारसरीर-आहारसरीरंगोवंग-उच्चागोदाणं बारसण्णं पयडीणं पंच संकमो। तं जहा-मिच्छत्तं गदसम्माइट्टिम्हि अंतोमुत्तकालं सम्मामिच्छत्त० अधापवत्तसंकमो। तदो उवरि पलिदो असंखे० भागमेत्तकालं सम्मामिच्छत्त उवेल्लणसंकमो। चरिमखंडए गुणसंकमो जाव तस्सेव दुचरिमफालि त्ति । चरिमफालीए सव्वसंकमो । दसणमोहक्खवगअपुव्वकरणपढमसमयप्पहुडि ताव सम्मामिच्छत्तस्स गुणसंकमो जाव चरिमट्टिदिखंडयस्स दुचरिमफालि त्ति। चरिमफालीए सव्वसंकमो । उवसम-वेदगसम्मा द्विचरम फालि तक उसका गुणसंक्रम होता है। अन्तिम फालिका सर्वसंक्रम होता है । उपशमसम्यग्दृष्टिके ही मिथ्यात्वका विध्यातसंक्रम भी होता है । वेदकसम्यक्त्वके अधप्रवृत्तसंक्रम, उद्वेलनसंक्रम, गुणसंक्रम और सर्वसंक्रम ये चार संक्रम होते हैं। यथा- मिथ्यात्वको प्राप्त हुए सम्यग्दृष्टि के सम्यक्त्वप्रकृतिका अन्तर्मुहर्त काल तक अधःप्रवृत्त संक्रम होता है। उसके आगे पल्योमके असंख्यातो भाग मात्र काल तक अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रतिभागवाला उसका उद्वेलनसंक्रम होता है। उद्वलनके अन्तिम काण्डकके प्रथम समयसे लेकर उसको ही द्विव रम फालि तक उसका गुण संक्रम होता है। उसकी अन्तिम फालि का सर्वसंक्रम होता है । __सम्यग्मिथ्यात्व, देवगति, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, नरकगति, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, मनुष्यगति, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आहारकशरीर, आहारकशरीरांगोपांग नामकर्म और उच्चगोत्र इन बारह प्रकृतियोंके पांच संक्रम होते हैं। यथामिथ्यात्वको प्राप्त सम्यग्दष्टि के अन्तर्महतं काल सम्यग्मिथ्यात्वका अधःप्रवत्त संक्रम होता है। उसके आगे पत्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र काल तक सम्यग्मिथ्यात्वका उद्वेलनसंक्रम होता है। अतिम काण्डकमें उसकी ही द्विचरम फालि तक गुणसंक्रम होता हैं। चरम फालिका सर्वसंक्रम होता है। दर्शनमोहक्षपक अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर अंतिम स्थितिकांडककी द्विचरम फालि तक सम्यग्मिथ्यात्वका गुणसंक्रम होता है। उसकी अन्तिम फालिका सर्व संक्रम होता है । उपशमसम्यग्दृष्टि * अ-काप्रत्यो: 'चत्तारिसंकमो' इति पाठः। सम्मे विज्झादपरिहीगा। गो क. ४२३. ४ ताप्रती उज्वेल्लणसंकमो। अंगुलस्स असखे०भागपडिमागिगो उज्वेल्लण-'इति पाठः। अ-काप्रत्योः 'मिच्छत',ताप्रतौ (सम्मा) मिच्छत' इति पाठः। सम्मविहीणब्वेल्ले पंचेव य तत्थ होंत संकमणा ।। गो. क. ४२४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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