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संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो
( ४१३ पवत्तसंकमो, तत्थ बंधदसणादो । उरि जाव अप्पमत्तसंजदचरिमसमओ ताव विज्झादसंकमो। उवरिमपुव्वकरणपढमसमयप्पडि जाव चरिमद्विदिखंडयदुचरिमफालि ति ताव गुणसंकमो । कारणं सुगमं । चरिमफालीए सव्वसंकमो, परपयडिसंछोहणेण विणटुत्तादो।
पच्चक्खाणचदुक्कस्स अपच्चवखाणचदुक्कभंगो । णवरि संजदासंजदो त्ति एदेसिनधापवत्तसंकमो।
अरदि-सोग्गाणं मिच्छाइटिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदो त्ति ताव अधापमत्तसंकमो, तत्थ एदासि बंधुवलंभादो । अप्पमत्तसंजदम्हि * विज्झादसंकमो, तत्थ बंधाभावादो। अपुव्वकरणपढमसमयप्पहुडि जाव अप्पणो चरिमट्ठिदिखंडयदुचरिमफालि त्ति ताव गुणसंकमो, अप्पसत्था त्ति बंधाभावादो। चरिमफालीए सव्वसंकमो । कारणं सुगमं । णिहा-पयला-अप्पसत्थवण्ण-गंध-रस-फास-उवघादाणं अधापवत्तसंकमो गुणसंकमो चेदि दो चेव संकमा । तं जहा- णिद्दा-पयलाणं मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अपुव्वकरणस्स पढम-सत्तमभागो त्ति जाव अधापवत्तसंकमो, एत्थ एदासि बंधुवलंभादो । उवरि जाव सुहुमसांपराइयचरिमसमओ ति ताव गुणसंकमो, बंधाभावादो। अप्पसत्थवण्णचदुक्कस्स मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अपुव्वकरणस्स छ- सत्तमभागा त्ति अधापवत्तसंकमो। होता है, क्योंकि, वहां इनका बन्ध देखा जाता है । आगे अप्रमत्तसंयतके अन्तिम समय तक उनका विध्यातसंक्रम होता है। ऊपर अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर अन्तिम स्थितिकाण्डकको द्विचरम फालि तक उनका गुणसंक्रम होता है । इसका कारण सुगम है । अन्तिम फालिका सर्वसंक्रम होता है, क्योंकि, वह अन्य प्रकृति में प्रक्षिप्त होकर नष्ट होती है ।
प्रत्याख्यानावरणचतुष्ककी प्ररूपणा अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके समान है । विशेष इतना है कि संयतासंयत गुणस्थान तक इनका अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है ।
___अरति और शोकका मिथ्यादृष्टि से लेकर प्रमत्तसंयत तक अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है, क्योंकि, उनमें इनका बन्ध पाया जाता है । अप्रमत्तसंयतमें इनका विध्यातसंक्रम होता है, क्योंकि, वहां इनका बन्ध नहीं है। अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर अपने अन्तिम स्थितिकाण्डककी द्विचरय फालि तक उसका गुणसंक्रम होता है क्योंकि, वहां अप्रशस उनका बन्ध नहीं है। उनकी अन्तिम फालिका सर्वसंक्रम होता है । इसका कारण सुगम है
निद्रा, प्रचला तथा अप्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस व स्पर्श और उपघातके अधःप्रवृत्तसंक्रम और गुणसंक्रम ये दो ही संक्रम होते हैं । यथा- निद्रा और प्रचलाका मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरणके प्रथम सप्तम भाग तक अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है, क्योंकि, यहां इनका बन्ध पाया जाता है । आगे सूक्ष्मसाम्परायिकके अन्तिम समय तक उनका गुणसंक्रम होता है, क्योंकि, यहां उतका बन्ध नही है।
अप्रशस्त वर्णादि चारका मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरणके सात भागोंमेंसे छठे भाग * अ-काप्रत्यो: 'अप्पमत्त संजदेदि' इति पाठः । 0 अ-काप्रत्यो: 'पयलायअप्पसत्थ ' इति पाट: -
* अ-काप्रत्योः 'संकमो' इति पाठः। णिद्दा पलया असुहं वण्णचउक्कं च उवघादे ॥ सत्तण्णह गणसंकममधास्वत्तो यxxx गो. क. ४२१-२२. ..
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