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________________ उवकमाणुयोगद्दारे उत्तरपयडिउदीरणाए सागित्तं (५७ तन्भवत्थणेरइयमादि काढूण जाव चरिमसमयतब्भवत्यो त्ति ताव अणुदीरओ । जहा रिया अस्स तहा सेसाउआणं पि परूवणा कायव्वा । णवरि तिरिक्ख मणुस - देवाउआणं जहाकमेण तिरिक्ख मणुस देवाचेव उदीरया । मणुसाउअस्स मिच्छाइट्ठिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदस्स मरणकाले चरिमावलियं मोत्तूण अण्णत्थ उदीरणा । णिरयगइणामाए सव्वो णेरइओ उदीरओ । तिरिक्खगइणामाए सव्वो तिरिक्खजोणिओ उदीरओ । मणुसगइणामाए अजोइं मोत्तूण सेसो सव्वो मणुसो मणुसिणी वा उदीरओ | देवगदिणामाए सव्वो देवो सव्वदेवी वा उदीरया । एइंदियजादिणामाए सव्वो एइंदियो, बीइंदियजादिणामाए सव्वो बीइंदियो, तीइंदियजादिणामाए सव्वो तीइंदियो, चरदियजादिणामाए सव्वो चरिदियो, पंचिदियजादिणामाए सव्वो पचिदियो उदीरओ । णवरि पंचिदियजादिणामाए अजोगिम्हि णत्थि उदीरणा । ओरालियस रणामाए उदीरगो अण्णदरो जो ओरालियसरीरस्स णिव्वत्तओ । वेउब्वियसरीरणामाए उदीरओ अण्णदरो जो वेउव्वियसरीरस्स णिव्वत्तओ । आहारसरीरणामाए उदीरगो अण्णदरो जो आहारसरीरस्स णिव्वत्तओ । तेजा - कम्मइयसरीराणमुदीरओ अण्णदरो जो सजोगो । जहा सरीराणं तहा तेसिमंगोवंगणामाणं वत्तव्वं । एवं अन्तिम समयवर्ती तद्भवस्थ होनेमें आवली मात्र काल शेष रहा है उससे लेकर अन्तिम समयवर्ती नारक तक उसकी उदीरणा नहीं होती । जैसे नारकायुकी उदीरणाकी प्ररूपणा की गई है वैसे ही शेष तीन आयु कर्मोंकी भी उदीरणाकी प्ररूपणा करनी चाहिये । विशेष इतना है कि तिर्यंच, मनुष्य और देव आयुओंके उदीरक यथाक्रमसे तिथंच मनुष्य एवं देव ही होते हैं | मनुष्यायुकी मिथ्यादृष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक उदीरणा होती है । मात्र मरणकालमें अन्तिम आवलीको छोड़कर अन्य कालमें ही उदीरणा होती है । नरकगति नामकर्मके सभी नारकी उदीरक होते हैं । तिर्यचगति नामकर्मके सभी तिर्यंच योनिवाले जीव उदीरक होते हैं। मनुष्यगति नामकर्मके उदीरक अयोगी जिनको छोडकर शेष सब मनुष्य और मनुष्यनियां होती हैं । देवगति नामकर्मके उदीरक सब देव और सभी देवियां हैं। एकेन्द्रियजाति नामकर्म के सब एकेन्द्रिय जीव, द्वीन्द्रियजाति नामकर्मके सब द्वीन्द्रिय जीव, त्रीन्द्रियजाति नामकर्मके सब त्रीन्द्रिय जीव, चतुरिन्द्रियजाति नामकर्म के सब चतुरिन्द्रय जीव, तथा पंचेंन्द्रियजाति नामकर्मके सब पंचेंन्द्रिय जीव उदीरक होते हैं विशेष इतना है कि पंचेन्द्रियजाति नामकर्मकी उदीरणा अयोगी गुणस्थान में नहीं है । औदारिकशरीर नामकर्मका उदीरक अन्यतर जीव होता है जो कि औदारिकशरीरका निर्वर्तक है । वैक्रियिकशरीर नामकर्मका उदीरक अन्यतर जीव होता है जो कि वैक्रियिकशरीरका निर्वर्तक है | आहारशरीर नामकर्मका उदीरक अन्यतर जीव होता है जो कि आहारशरीरका निर्वर्तक है । तैजस और कार्मण शरीरोंका उदीरक अन्यतर जीव होता है जो कि योगसे सहित है । जैसे शरीरोंकी उदीरणाका कथन किया गया है वैसे ही उनके अंगोपांग नामकर्मोंकी उदीरणाका भी कथन करना XXX कामतो Jain Education International बेव्वियसरीरणामस्स, तातो 'वेउब्वियसरीरस्स णामस्स For Private & Personal Use Only इति पाठः । www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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