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________________ ५६ ) छक्खंडागमे संतकम्म उदीरणा । अणंताणुबंधिचउक्कस्स मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी वा उदीरगो । अपच्चक्खाणचउक्कस्स मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइद्विचरिमसमओ त्ति ताव उदीरया । पच्चक्खाणचउक्कस्स मिच्छाइटिप्पहुडि जाव संजदासंजदस्स चरिमसमओ त्ति ताव उदीरया । णवंसयवेदस्स उदीरओ को होदि? सव्वो णवंसओ। णवरि खवओ उवसामओ वा णवंसओ णवंसयवेदपढमट्टिदीए उदयावलियमेत्तसेसाए अणुदीरगो णवंसयवेदस्स, अवसेसो सव्वो णवूसओ उदीरगो चेव। जहा णवंसयवेदस्स तहा इत्थिवेद-पुरिसवेदाणं पि वत्तव्वं । हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं मिच्छाइद्विमादि कादूण जाव अपुव्वकरणचरिमसमयं ति ताव उदीरगो। णवरि साद-हस्सरदीणं पढमसमयदेवमादि कादूण जाव अंतोमुहुत्तदेवो त्ति ताव णियमा उदीरणा, उवरि भज्जा। असाद-अरदिसोगाणं पढमसमयणेरइयमादि कादूण जाव अंतोमुहुत्तणेरइओ त्ति ताव णियमा उदीरणा । तिण्णं संजलणाणं मिच्छाइट्ठिमादि कादूण जाव अणियट्टिअद्धाए सग-सगबंधज्शवसाणाणं चरिमसमओ त्ति ताव उदोरणा। लोहसंजलणाए मिच्छाइट्ठिमादि कादूण जाव समयाहियावलियचरिमसमयसकसाओ ति ताव उदीरणा। णिरयाउअस्स+ सव्वम्हि णेरइयम्हि उदीरणा । णवरि आवलियचरिमसमय अनन्तानुबन्धिचतुष्कका मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीव उदीरक होता है। अप्रत्याख्यानचतुष्कके मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टिके अन्तिम समय तकके जीव उदीरक होते हैं। प्रत्याख्यानचतुष्कके मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत गुणस्थानके अन्तिम समय तकके जीव उदीरक होते हैं। नपुसंकवेदका उदीरक कौन होता है ? उसके उदीरक सभी नपुंसक जीव होते हैं। विशेष इतना है कि क्षपक और उपशामक नपुंसक जीव नपुंसकवेदकी प्रथम स्थितिके उदयावली मात्र शेष रहनेपर नपुंसकवेदके अनुदीरक होते हैं । शेष सब नपुंसक जीव उसके उदीरक ही होते हैं। जिस प्रकारसे नपुंसकवेदके उदीरकोंका कथन किया गया है, उसी प्रेकारसे स्त्री और पुरुष वेदोंके भी उदीरकोंका कथन करना चाहिए । हास्य, रति, अरति, शोक भय व जुगुप्सा; इन प्रकृतियोंका उदीरक मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरणके अन्तिम समय तक रहनेवाला जीव होता है । विशेष इतना है कि देवके उत्पन्न होनेके प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहुर्त तक सातावेदनीय, हास्य और रति इनकी उदीरणा नियमसे होती है। आगे वह भाज्य है। अर्थात् आगे वह होती भी है और नहीं भी होती। तथा नारकीके उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्त तक असाता वेदनीय, अरति और शोककी उदीरणा नियमसे होती हैं। तीन संज्वलन कषायोंकी उदीरणा मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिकरणकालमें अपने-अपने बन्धाध्यवसानोंके अन्तिम समय तक होती है । संज्वलनलोभकी उदीरणा मिथ्यादृष्टिसे लेकर अन्तिम समयवर्ती सकषाय होने में एक समय अधिक आवलि मात्र कालके शेष रहने तक होती है। नारकायुकी उदीरणा सब नारकियोंमें होती है। विशेष इतना है कि जिस नारक जीवके क. प्र ४, ६.*xxx ते ते बंधतगा कसायाणं । क. प्र. ४, २०. अंतमहत्तं तु आइमं देवा । इयराणं नेरइया उड्ढं परियत्तणविहीए ॥ प. सं. ४, २१. उभाउअस्स' ताप्रती 'णिरयाउ (आउ ) अस्स' इति पाठः। ४ हास-रई-सायाणं काप्रती "णिरया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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