________________
३४ )
छक्खंडागमे संतकम्म जीवादो0 अपुधभूदा कम्मइयवग्गणक्खंधाणं तत्तो पुधभूदाणं कधं परिणामांतरं संपादेति ? णं एस दोसो, जलणट्टिददहणगुणेण तेल्लस्स वट्टिगयस्सरी कज्जलागारेण परिणामुवलंभादो । वुत्तं च--
. राग-द्वेषायूष्मा स योग*-वात्मदीप आवर्ते ।
स्कन्धानादाय पुनः परिणमयति तांश्च कर्मतया ।। १८ ॥ जदि मिच्छत्तादिपच्चएहि कम्मइयवग्गणक्खंधा अटकम्मागारेण परिणमंति तो एगसमएण सव्वकम्मइयवग्गणक्खंधा कम्मागारेण कि ण परिणमंति, णियमाभावावो? ण, दव्व-खेत्त-काल-भावे त्ति चदुहि णियमेहि णियमिदाणं परिणामुवलंभादो। दव्वेण अभवसिद्धिएहि अणंतगुणाओ सिद्धाणमणंतभागमेत्ताओ चेव वग्गणाओ एगसमएण एगजीवादो कम्मसरूवेण परिणमंति। खेत्तेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तोगाहणाओ जीवेणोगाढखेत्तट्टियाओ चेव परिणमंति, ण सेसाओ। कालेग एगसमयमादि कादूण जाव असंखेज्जलोगमेत्तकाल कम्मइयवग्गणसरूवेण द्विदाओ चेव परिणमंति, ण सेसाओ।
योग ये जीवसे अभिन्न होकर उससे पृथग्भूत कार्मण वर्गणाके स्कन्धोंके परिणामान्तर ( रूपित्व ) को कैसे उत्पन्न करा सकते हैं ?
समाधान-- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अग्निमें स्थित दहन गुणके निमित्तसे बत्तीमें रहनेवाले तेलका कज्जलके आकारसे परिणाम पाया जाता है। कहा भी है--
संसारमें राग-द्वेषरूपी उष्णतासे संयुक्त वह आत्मारूपी दीपक योगरूप बत्तीके द्वारा ( कार्मण वर्गणाके ) स्कन्धोंको ग्रहण करके फिर उन्हें कर्मस्वरूपसे परिणमाता है ।। १८ ।।
शंका-- यदि मिथ्यात्वादिक प्रत्ययोंके द्वारा कार्मण वर्गणाके स्कन्ध आठ कर्मरूपसे परिणमन करते हैं तो समस्त कार्मण वर्गणाके स्कन्ध एक समयमें आठ कर्मरूपसे क्यों नहीं परिणत हो जाते, क्योंकि, उनके परिणमन का कोई नियामक नहीं है ?
समाधान-- नहीं, क्योंकि, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चार नियामकों द्वारा नियमको प्राप्त हुए उक्त स्कन्धोंका कर्मरूपसे परिणमन पाया जाता है । यथा-व्यकी अपेक्षा अभवसिद्धिक जीवोंसे अनन्तगुणी और सिद्ध जीवोंके अनन्त में भाग मात्र ही वर्गणायें एक समयमें एक जीवके साथ कर्मस्वरूपसे परिणत होती हैं । क्षेत्रकी अपेक्षा जीवके द्वारा अवगाहको प्राप्त क्षेत्रमें स्थित अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र अवगाहनावाली वर्गणायें ही कर्मस्वरूपसे परिणत होती हैं, शेष वर्गणायें कर्मस्वरूपसे परिणत नहीं होतीं । कालकी अपेक्षा एक समयसे लेकर असंख्यात लोक मात्र कालके भीतरकी कार्मणवर्गणा स्वरूपसे स्थित ही वे वर्गणायें कर्मस्वरूपसे परिणत होती हैं, शेष नहीं होती । भावकी अपेक्षा कार्मणवर्गणा पर्यायरूपसे परिणत
* तातो
४ माप्रती 'जोगजीवादो' इति पाठः। तातो 'वडिगवस्स इति पाठः ।
'सयोग- इति पाठः। मप्रती आदत्ते - इति पाठः । Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org