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छक्खंडागमे संतकम्म थावराणं पक्कमाणुववत्तीदो । समयावलिया-खण-लव-मुहुत्तादी कालपक्कमो।। भावपक्कमो दुविहो- आगमदो णोआगमदो च। तत्थ आगमदो पक्कमाणुओगद्दारजाणओ उवजुत्तो । णोआगमदो भावपक्कमो ओदइयादिपंचभावा । एत्थ कम्मपक्कमे पयदं । प्रक्रामतीति प्रक्रमः कार्मणपुद्गलप्रचयः । आदाणिओ एत्थ भणदि- जहा कुंभारो एयादो मट्टियपिंडादो अणेयाणि घडादीणि उप्पादेदि तहा इत्थी पुरिसो णवंसओ थावरो तसो वा जो वा सो वा एयविहं कम्मं बंधिदूण अट्ठविहं करेदि, अकम्मादो कम्मस्स उप्पत्तिविरोहादो ? एत्तो णिग्गहो कीरदे- जदि अकम्पादो कम्मुप्पत्ती ण होदि तो अकम्मादो तुब्भेहि संकप्पिदएगकम्मुप्पत्ती वि ण होदि, कम्मत्तं पडि विसेसाभावादो । अह कम्मइयवग्गणादो जमेगमुप्पण्णं तं जइ कम्मं ण होदि तो तत्तो ण अट्ठकम्मागमुप्पती, अकम्मादो कम्मुप्पत्तिविरोहादो। ण च एयंतेण कारणाणुसारिणा कज्जेण होदव्वं, मट्टियपिंडादो मट्टिापडं मोत्तूण घटघटी-सरावालिंजरुट्टियादीणमणुप्पत्तिप्पसंगादो । सुवण्णादो सुवण्णस्स घटस्सेव उप्पत्तिदसणादो कारणाणुसारि चेव कज्जं ति ण वोत्तुं जुत्तं कढिणादो* सुवण्णादो जलणादिसंजोगेण सुवण्णजलुप्पत्तिदसणादो। किं च- कारणं व ण कज्जमुप्पज्जदि, तिर्यग्लोक संज्ञा है, क्योंकि, इसके विना स्थिरशील तीन लोकों का प्रक्रम बन नहीं सकता। समय, आवली, क्षण, लव और मुहुर्त आदिकको कालप्रक्रम कहा जाता है। भावप्रक्रम दो प्रकारका है-- आगमभावप्रक्रम और नोआगमभावप्रक्रम। उनमें प्रक्रम अनयोगद्वारका ज्ञायक उपयोग युक्त जीव आगमभावप्रक्रम है। औदयिक आदिक पांच भावोंको नोआगमभावप्रक्रम कहा जाता है। यहां कर्मप्रक्रम प्रकृत है। 'प्रक्रामतीति प्रक्रमः' इस निरुक्तिके अनुसार कार्मण पुद्गलप्रचयको प्रक्रम कहा गया है।
शंका-- यहां शंकाकार कहता है कि जिस प्रकार कुम्हार मिट्टीके एक पिण्डसे अनेक घटादिकोंको उत्पन्न करता है उसी प्रकार स्त्री, पुरुष, नपुंसक, स्थावर, त्रस अथवा जो कोई भी जीव एक प्रकारके कर्मको बांधकर उसे आठ भेद रूप करता है; क्योंकि, अकर्मसे कर्मकी उत्पत्तिका विरोध है ?
समाधान-- इस शंकाका निग्रह करते हैं। यदि अकर्मसे कर्मकी उत्पत्ति नहीं होती है तो फिर तुम्हारे द्वारा संकल्पित एक कर्मकी उत्पत्ति भी अकर्मसे नहीं हो सकतो, क्योंकि, कर्मत्वके
ति कोई विशेषता नहीं है। यदि कहा जाय कि कार्मण वर्गणासे जो एक उत्पन्न हआ है वह पदि कर्म नहीं है तो फिर उससे आठ कर्मोंकी उत्पत्ति नहीं हो सकती; क्योंकि, अकर्मसे कर्मकी उत्पत्तिका विरोध है । दूसरे कारणानुसारी ही कार्य होना चाहिये, यह एकान्त नियम भी नहीं है; क्योंकि, मिटीके पिण्डसे मिट्रीके पिण्डको छोडकर घट, घटी, शराब अलिंजर और उष्टिका आदिक पर्याय विशेषों की उत्पत्ति न हो सकने का प्रसंग अनिवार्य होगा। यदि कहो कि सुवर्णसे सुवर्णके घटकी ही उत्पत्ति देखी जानेसे कार्य कारणानुसारी ही होता है, सो ऐसा कहना भी योग्य नहीं है; क्योंकि, कठोर सुवर्णसे अग्नि आदिका संयोग होनेपर सुवर्णजलकी उत्पत्ति देखी
0 तापतौ 'मुहुतादिकालपक्क मो , इति पाठः। काप्रतौ ' आगमणोआगमदो' इति पाठः । 8 काप्रती ' अक्कमादो 'इति पाठः । * का-ता-मप्रतिषु ' कडिणादो , इति पाठ ।
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