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पक्क माणुयोगद्दार
जयउ भुवणेक्कतिलओ तिहुवणकलिकलुस धुवणवावारो । संतियरो संतिजिणो पक्कमअणुयोगकत्तारो ॥ १ ॥
तत्थ
पक्कमेत अणुयोगद्दारस्स थोवत्थपरूवणे कीरमाणे अपयदत्थणिराकरणदुवारेण पयदत्यपरूवणट्ठ णिक्खेवो कीरदे । तं जहा - णामपक्कमो, ठवणपक्कमो, Goatraमो, खेत्तपक्कमो, कालपक्कमो, भावपक्कमो चेदि छव्विहो पक्कमो । णाम-ठवणं गदं । दव्वपक्कमो दुविहो आगम-णोआगमदव्वपक्कमभेएण । आगमव्वपक्कम पक्कमाणुओगद्दारजाणगो अणुवजुत्तो । णोआगमदव्वपक्कमो तिविहो जाणुगसरीर भविय तव्वदिरित्तभेदेण । जाणुगसरीर-भवियं गदं । तव्वदिरिपक्कमो दुविहो - कम्मपक्कमो णोकम्मपक्कमो चेदि । तत्थ कम्मपक्कमो अट्ठविहो । uttarraat तिविहो- सचित्त-अचित्त - मिस्सभेएन । अस्साणं हत्थीणं पक्कमो सचित्तपक्कमो णाम । हिरण्ण-सुवण्णादीणं पक्कमो अचित्तपक्कमो णाम । साभाराणं हत्थी अस्साणं वा पक्कमो मिस्तपक्कमो णाम । खेत्तपक्कमो तिविहो - उड्ढलोगearer अधोलोगपक्कमो तिरियलोगपक्कमो चेदि । एत्थ आधेये आधारोवयारेण तत्थट्टियजीवाणं उड्ढाधोतिरियलोगो त्ति सण्णा, अण्णहा तिष्णं लोगाणं शान्तिके
लोकके एक मात्र तिलक स्वरूप, तीन लोकके शत्रुभूत पाप- मैलके धोने में व्यापृत, करनेवाले और प्रक्रम अनुयोग के कर्ता ऐसे शान्तिनाथ जिनेन्द्र जयवन्त होवें ॥ १ ॥
प्रक्रम इस अनुयोगद्वारके स्तोक अर्थोंकी प्ररूपणा करते समय अप्रकृत अर्थके निराकरण द्वारा प्रकृत अर्थकी प्ररूपणा करनेके लिये निक्षेप किया जाता है । वह इस प्रकार है- नामप्रक्रम, स्थापनाप्रक्रम, द्रव्यप्रक्रम, क्षेत्रप्रक्रम, कालप्रक्रम और भावप्रक्रम; इस प्रकार प्रक्रम छह प्रकारका है । इनमें नामप्रक्रम और स्थापनाप्रक्रम अवगत हैं । द्रव्यप्रक्रम आगमद्रव्यप्रक्रम और नोआगमद्रव्यप्रक्रमके भेदसे दो प्रकारका है । उनमें प्रक्रम अनुयोगद्वारका ज्ञायक उपयोग रहित जीव आगमद्रव्यप्रक्रम हैं । नोआगमद्रव्यप्रक्रम ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकारका है । इनमें से ज्ञायकशरीर और भावी नोआगमद्रव्यप्रक्रम अवगत हैं । तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यप्रक्रम कर्मप्रक्रम और नोकर्मप्रक्रमके भेदसे दो प्रकारका है । उनमें कर्मप्रक्रम आठ प्रकारका है । नोकर्मप्रक्रम सचित्त, अचित्त और मिश्रके भेदसे तीन प्रकारका है । अश्वों और हाथियोंका प्रक्रम सचित्तप्रक्रम, हिरण्य और सुवर्ण आदिकोंका प्रक्रम अचित्तप्रक्रम, तथा आभरण सहित हाथियों व अश्वोंका प्रक्रम मिश्रप्रक्रम कहलाता है ।
क्षेत्रप्रक्रम ऊर्ध्वलोकप्रक्रम, अधोलोकप्रक्रम और तिर्यग्लोकप्रक्रमके भेदसे तीन प्रकारका है । यहां आधेय में आधारका उपचार करनेसे उन लोकोंमें स्थित जीवोंकी ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और
ताप्रती ' थोवत्त ( त्थ ) यपरूवणे' इति पाठः ।
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