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छवखंडागमे संतकम्म दोसो, छदव्व-णवपयत्थविसयसद्दहणं सम्मइसणं ति घाइज्जमाणजीवंस पदुप्पायणह्र बज्झत्थणिबंधणपरूवणाकरणादो।
चारित्तमोहणीयमप्पाणम्मि णिबद्धं ॥ १७ ।।
राग-दोसा बज्झत्थालंबणा, तेसिं च गिरोहो चारित्तं । तदो चारित्तमोहणीयं सव्वदव्वेसु णिबद्धं ति वत्तत्वं । सच्चमेदं, किंतु तमेत्य णावेविखदं । कुदो ? बहुसो पदुप्पायणेण उवएसेण विणा एत्थ तदवगमादो।
णिरयाउअं णिरयभवम्मि णिबद्ध ।। १८ ॥ कुदो ? तत्थ णिरयभवधारणसत्तिदंसणादो।
सेसाउआणि वि अप्पप्पणो भवेसु* णिबद्धागि ।। १९ ।। तत्तो तेसि भवाणमवट्ठाणुवलंभादो। णामं तिधा णिबद्धं- जीवणिबद्धं पोग्गलणिबद्धं खेतणिबद्धं च ।२०।
एवं णामणिबंधणं तिविहं चेव होदि, अण्णस्स अणुवलंभादो। पोग्गलविवागणिबद्धपयडिपरूवणळं गाहासुत्तं भणदि--
नाम सम्यग्दर्शन है, अत एव घाते जानेवाले जीवगुणों की प्ररूपणा करने के लिए बाह्यार्थनिबन्धनकी प्ररूपणा की गई है।
चारित्रमोहनीयकर्म आत्मामें निबद्ध है ॥ १७ ॥
शंका-- राग और द्वेष बाह्य अर्थ का आलम्बन करने वाले हैं, और चूंकि उन्हीं के निरोध करनेका नाम चारित्र है अत एव चारित्रमोहनीय कर्म सब द्रव्योंमें निबद्ध है; ऐसा यहां कहना चाहिये ?
समाधान-- यह सत्य है, किन्तु उसकी यहां अपेक्षा नहीं की गई है। कारण कि वहत वार प्ररूपणा को जानेसे उपदेश के विना भी यहां उसका ज्ञान हो जाता है।
नारकायु नारक भवमें निबद्ध है ॥ १८ ॥
कारण कि उसमें नारक भव धारण करानेकी शक्ति देखी जाती है। शेष तीन आयु कर्म भी अपने अपने भवोंमें निबद्ध हैं ॥ १९॥ __ क्योंकि, उनसे उन भवोंका अवस्थान पाया जाता है ।
नाम कर्म तीन प्रकारसे निबद्ध है-- जीव द्रव्यमें निबद्ध है, पुद्गलमें निबद्ध है, और क्षेत्रमें निबद्ध है ॥ २० ॥
इस प्रकार नामका निबन्धन तीन प्रकारका ही है, क्योंकि, इनके अतिरिक्त अन्य कोई निबन्धन पाया नहीं जाता। पुद्गलविपाकनिबद्ध प्रकृतियोंकी प्ररूपणा करने के लिये गाथासूत्र कहते हैं--
* कारतो । निबद्ध ति त्ति घेत्तव्वं ' इति पाठः।
कारतो । जीवस्स ' इति पाठः । * ताप्रती 'भवे वा ' इति पाठः ।
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