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________________ ३२४) छक्खंडागमे संतकम्म विसे० । णिद्दाए विसे० । पयलापयलाए विसे० । णिद्दाणिद्दा० विसे० । थीणगिद्धीए विसे०। केवलदसण० विसे० । अपच्चक्खाण० विसे० । पच्चक्खाण० विसे० । णिरयाउ० अणंतगुणो। देवाउ० विमेसा० । तिरिक्खाउ० असंखे० गुणो। मणुसाउ० विसेसा० । ओरालियसरीर० असंखे० गुणो। तेजा० विसेसाहिओ। कम्मइय० विसे। वेउब्विय० विसे० । तिरिक्खगइ० संखे० गुणो। जसकित्ति-अजसकित्ति० विसे० । मणुसगइ० विसे० । देवगई० विसे० । णिरयगई० विसे० । दुगुंछाए संखे० गुणो। भय० विसे० । हस्स-सोगे विसे०। रदि-अरदि० विसेसा०। अण्णदरवेदे विसे० । दाणंतराइय० विसे० । लाहंतरा० विसे० । भोगंतरा० विसे० । परिभोगंतरा०विसे०। वीरियंतरा० विसे । मणपज्ज० विसे । ओहिणाणा० विसे० । सुदणाण० विसे० । मदि० विसेसा० । ओहिदंसग विसे० । अचक्खु० विसे । चक्खु० विसे० । संजलणाए विसे । णीचागोदे० विसे० । उच्चागोदे विसे० । सादासादाणं विसेसा० । एव. मसण्णिचिदिएसु जहण्णओ पदेसुदयदंडओ समत्तो। एत्तो भुजगारपदेसउदओ। तत्थ अट्ठपदं-जमेण्हि पदेसग्गमुदिण्णं तत्तो अन्यतरका असंख्यातगुणा है । केवलज्ञानावरणका असंख्यातगुणा है। प्रचलाका विशेष अधिक है । निद्राका विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलाका विशेष अधिक है । निद्रानिद्राका विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धिका विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्को अन्यतरका विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरका विशेष अधिक है । नारकायुका अनन्तगुणा है । देवायुका विशेष अधिक है। तिर्यंचआयुका असंख्यातगुणा है। मनुष्यायुका विशेष अधिक है। औदारिकशरीरका असंख्यातगुणा है । तैजसशरीरका विशेष अधिक है । कार्मणशरीरका विशेष अधिक है। वैक्रियिकशरीरका विशेष अधिक है । तिर्यंचगतिका संख्यातगुणा है । यशकीर्ति और अयशकीतिका विशेष अधिक है। मनुष्यगतिका विशेष अधिक है । देवगतिका विशेष अधिक है। नरकगतिका विशेष अधिक है । जुगुप्साका संख्यातगुणा है । भयका विशेष अधिक है। हास्य व शोकका विशेष अधिक है। रति व अरतिका विशेष अधिक है। अन्यतर वेदका विशेष अधिक है। दानान्तरायका विशेष अधिक है। लाभान्तरायका विशेष अधिक है । भोगान्तरायका विशेष अधिक है । परिभोगान्तरायका विशेष अधिक है। वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है। मनःपर्ययज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अवधिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है । मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। संज्वलनचतुष्कमें अन्यतरका विशेष अधिक है। नीचगोत्रका विशेष अधिक है । उच्चगोत्रका विशेष अधिक है । साता व असातावेदनीयका विशेष अधिक है । इस प्रकार असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंमें जघन्य प्रदेशोदयदण्डक समाप्त हुआ। .. यहां भुजाकार प्रदेशोदयका अधिकार है। उसमें अर्थपद कहा जाता है- इस समय www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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