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________________ उदयाणुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा ( ३२३ देवगदीए जहण्णओ पदेसुदओ मिच्छत्ते थोवो । सम्मामिच्छत्ते असंखे० गुणो। सम्मत्ते असंखे० गुणो । अपच्चक्खाणे असंखे० गुणो । पच्चक्खाणे विसेसा० । अणंताणुबंधि० असंखे० गुणो। केवलणाणावरणे असंखे० गुणो। पयलाए विसे० । णिहाए विसे। केवलदंस० विसे०। दुगुंछाए अणंतगणो। भय० विसे। हस्स० विसे। रदि० विसे० । पुरिसवेदे० विसे० । संजलणाए अण्णदर० विसे० । ओहिणाण. असंखे० गुणो। ओहिदसण० विसे० । देवाउ० असंखे० गुणो। वेउब्वियसरीर० असंखे० गुणो। तेजा० विसे०। कम्मइय० विसे० । देवगइ० असंखे० गुणो । जसकित्तीए विसे०। अजसकित्तीए विसे०। सोगे संखे० गुणो०। अरदि० विसे०। इत्थिवेद० विसे०। दाणंतरा० विसे० । लाहंतराइय० विसे० । भोगंतराइय० विसे० । परिभोगंतराइय० विसे० । वीरियंतराइय० विसे० । मणपज्जव० विसे० । सुदणाण० विसे०। मदि० विसे । अचक्खु० विसे० । चक्खु० विसे० । उच्चागोदे विसे० । सादासाद० तुल्लो विसेसाहिओ। एवं देवगईए जहण्णपदेसुदयदंडओ समत्तो। ___ असण्णीसु जहण्णओ पदेसुदओ मिच्छत्ते थोवो सासणपच्छायदं पडुच्च उदीरणोदओ त्ति । अणंताणुबंधि० असंखे० गुणो। केवलणाण० असंखे० गुणो । पयला० देवगतिमें मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशोदय स्तोक है । सम्यग्मिथ्यात्वका असंख्यातगुणा है । सम्यक्त्वका असंख्यातगुणा है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरका असंख्यातगुणा है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्को अन्यतरका विशेष अधिक है। अनन्तानुबंधिचतुष्कमें अन्यतरका असंख्यातगुणा है । केवलज्ञानावरणका असंख्यातगुणा है। प्रचलाका विशेष अधिक है। निद्राका विशेष अधिक है । केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है । जुगुप्साका अनन्तगुणा है। भयका विशेष अधिक है। हास्य का विशेष अधिक है। रति का विशेष अधिक है । पुरुषवेदका विशेष अधिक है । संज्वलनचतुष्को अन्यतरका विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणका असंख्यातगुणा है । अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है। देवायुका असंख्यातगुणा है । वैक्रियिकशरीरका असंख्यातगुणा है । तैजसशरीरका विशेष अधिक है। कार्मणशरीरका विशेष अधिक है । देवगतिका असंख्यातगुणा है । यशकीर्तिका विशेष अधिक है । अयशकीतिका विशेष अधिक है । शोक का संख्यातगुणा है। अरतिका विशेष अधिक है । स्त्रीवेदका विशेष अधिक है । दानान्तरायका विशेष अधिक है । लाभान्तरायका विशेष अधिक है। भोगान्तरायका विशेष अधिक है। परिभोगान्त रायका विशेष अधिक है । वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है। मनःपर्ययज्ञानावरणका विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है । चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। उच्चगोत्रका विशेष अधिक है । साता व असाता वेदनीयका तुल्य विशेष अधिक है । इस प्रकार देवगतिमें जघन्य प्रदेशोदयदण्डक समाप्त हुआ। असंज्ञी जीवोंमें मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशोदय स्तोक है, यह सासादन गुणस्थानसे पीछे मिथ्यात्व में आये हुए जीवकी अपेक्षा उदीरणोदय स्वरूप है । अनन्तानुबंधिचतुष्कर्म Jain Education International For Private & Personal use only. www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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