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________________ ३२२ ) छक्खंडागमे संतकम्मं संजदस्स उदयट्ठिदिग्गहणादो। सादासादाणं विसेसाहिओ । एवं तिरिक्खगदीए जहणओ पदेसुदयदंडओ समत्तो । । गदी जहणओ पदेसुदओ मिच्छत्ते थोवो । सम्मामिच्छत्ते असंखे० गुणो । सम्मत्ते असंखे० गुणो । अनंताणुबंधि असंखे० गुणो । केवलणाण० असंखे० गुणो । पयलाए विसे० । बिद्दाए विसे० । पयलापयलाए विसे० । णिद्दाणिद्दाए विसे० । rtofrate विसे० । केवलदंसणावरण ० विसे० । अपच्चक्खाण० विसे० । पच्चवखाण० विसे० ० । ओहिणाण० अनंतगुणो । ओहिदंस० विसे० । मणुस्साउअ० असंखे० गुणो । ओरालियसरीर० असंखे० गुणो । वेउ० विसे० । तेया० विसे० । कम्मइय० विसे० । मईए संखे० गुण । जसकित्ति - अजस कित्ति० विसेसाहियो । दुगंछाए संखे० गुणो । भय० विसे० । हस्स सोगे विसे० । रदि- अरदि० विसे० । अणदरवेदे तुल्ला विसे० । दाणंतराइय० विसे० । लाहंतराइय० विसे० । भोगंतराइय० विसे० | परिभोगंतरा० विसे० । वीरियंतरा ० विमे० । मणपज्जवणाणावरणे विसे० ! सुदणाणावरणे विसे० । मदिआवरणे विसे० । अचक्खु० विसे० । चक्खु ० विसे० । उच्चणीच० विसे० । सादासाद० विसे० । आहारसरीर० असंखे० गुणो । तित्थयर० असंखे० गुणो । एवं मणुसगदीए जहण्णओ पदेसुदयदंडओ समत्तो । तिर्यंचगतिमें जघन्य प्रदेशोदयदण्डक समाप्त हुआ । मनुष्यगति में मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशोदय स्तोक है । सन्यमग्मिथ्यात्वका असंख्यातगुणा है । सम्यक्त्वका असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धि चतुष्कमें अन्यतरका असंख्यातगुणा है । केवलज्ञानावरणका असंख्यातगुणा है । प्रचलाका विशेष अधिक है । निद्राका विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलाका विशेष अधिक है । निद्रानिद्राका विशेष अधिक है । स्त्यानगृद्धिका विशेष अधिक है । केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क में अन्यतरका विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरणचतुष्क में अन्यतरका विशेष अधिक है । अवधिज्ञानावरणका अनन्तगुणा है । अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है । मनुष्यायुका असंख्यातगुणा है । औदारिकशरीरका असंख्यातगुणा है । वैक्रियिकशरीरका विशेष अधिक है । तैजसशरीरका विशेष अधिक है । कार्मणशरीरका विशेष अधिक | मनुष्यगतिका संख्यातगुणा है । यशकीर्ति और अयशकीर्तिका विशेष अधिक है । जुगुप्साका संख्यातगुणा है । भयका विशेष Aafan है | हास्य व शोकका विशेष अधिक है । रति व अरतिका विशेष अधिक है । अन्यतर वेदका तुल्य विशेष अधिक है । दानान्तरायका विशेष अधिक है। लाभान्तरायका विशेष अधिक है । भोगान्तरायका विशेष अधिक है । परिभोगान्तरायका विशेष अधिक है । वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है । मन:पर्ययज्ञानावरणका विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है । मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अचक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है । चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। ऊंच व नीच गोत्रका विशेष अधिक है । साता व असातावेदनीया विशेष अधिक है । आहारकशरीरका असंख्यातगुणा है । तीर्थंकरप्रकृतिका असंख्यातगुणा है । इस प्रकार मनुष्यगति में जघन्य प्रदेशोदयदण्डक समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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