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________________ - उदयानुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा (- ३२१ l गुणो । पलाए विसे० । णिद्दा० बिसे० । पयलापयला ० विसे० । णिद्दाणिद्दाए विसे० | थी गिद्धी० विसे० । केवलदं० विसे० । अपच्चक्खाण० विसे० । पच्चवखाण० विसे० । ओहिणाण० अनंतगुणो । ओहिदंस० विसे० । तिरिखखाउ० असंखे ० गुणो । ओरालिय० असंखे० गुणो । तेजा० विसे० । कम्मइय० विसे० । वेउ० विसे० । तिरिक्खगइ० संखे० गुणो । जसकित्ति - अजसगित्ति० विसे० । दुगंछाए संखेज्जगुणो । भये विसे० । हस्स विसे० । सोगे विसे० । रदि-अरदीसु विसे० । सयवेदे विसे ० । इत्थि पुरिसदेवे विसे० । दाणंतराइय० विसेसा । लाहंतराइय० विसे० । भोगंतराइय० विसे० । परिभोगंतरा० विसे० । वीरियंतराइय० विसेसा । मणपज्जव० विसे० । सुदणाण० विसे० । मदिणाण० विसे० । अचक्खु ० विसे० । चक्खु ० विसे० । संजलण० विसे० । णीचागोद० विसे० । उच्चागोद० विसेसा०, खविदकम्मंसियलक्ख गेणागतूण सण्णीसुप्पज्जिय संजमासंजम घेत्तूण पुणा मिच्छत्तं पडिवज्जिय गुणसेडीओ गालिय पुणो वि संजमासंजम पडिवज्जिय आवलियसंजदा 1 है । केवलज्ञानावरणका असंख्यातगुणा है । प्रचलाका विशेष अधिक है । निद्राका विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलाका विशेष अधिक है । निद्रानिद्राका विशेष अधिक है । स्त्यानगृद्धिका विशेष अधिक है । केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क में अन्यतरका विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरणचतुष्क में अन्यतरका विशेष अधिक है । अवधि - ज्ञानावरणका अनन्तगुणा है । अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है । तिर्यंचआयुका असंख्यात - गुणा है । औदारिकशरीरका असंख्यातगुणा है । तैजसशरीरका विशेष अधिक है । कार्मणशरीरका विशेष अधिक है । वैक्रियिकशरीरका विशेष अधिक है । तिर्यंचगतिका संख्यातगुणा है । यशकीर्ति और अयशकीर्तिका विशेष अधिक है । जुगुप्साका संख्यातगुणा है । भयका विशेष अधिक है । हास्यका विशेष अधिक है । शोकका विशेष अधिक है । रति और अरतिका विशेष अधिक है । नपुंसकवेदका विशेष अधिक है । स्त्री और पुरुष वेदका विशेष अधिक है । दानान्तरायका विशेष अधिक है । लाभान्तरायका विशेष अधिक है । भोगान्तरायका विशेष अधिक है । परिभोगान्तरायका विशेष अधिक है । वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है । मन:पर्यय ज्ञानावरणका विशेष अधिक है । श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है । मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अचक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है । चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है । संज्वलनचतुष्क में अन्यतरका विशेष अधिक है । नीचगोत्रका विशेष अधिक है । उच्चगोत्रका विशेष अधिक है, क्योंकि क्षपितकर्माशिकस्वरूपसे आकर, संज्ञियोंमें उत्पन्न होकर, संयमासंयमको ग्रहणकर, फिर मिथ्यात्वको प्राप्त होकर, गुणश्रेणियोंको गलाकर, फिरसे भी संयमासंयमको प्राप्त होकर आवलि मात्र संयतासंयतकी उदयस्थिति यहां ग्रहण की गयी है । उच्चगोत्रके जघन्य प्रदेशोदयसे साता व असाता वेदनीयका जघन्य प्रदेशोदय विशेष अधिक है । इस प्रकार मप्रतिपाठोऽयम् । अप्रतौ 'दुगंछाए० विसे० सोगे ० ' ताप्रतौ ' दुगंछाए संखेज्जगुणो । सोगे' इति पाठः । Jain Education International و arat 'दुछाए विसेसं गए सोगे ! 3 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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