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________________ ३२० ) छक्खंडागमे संतकम्म णिरयगईए जहण्णओ पदेसुदओ मिच्छत्ते थोवो । सम्मामिच्छत्ते असंखे०गुणो। सम्मत्ते असं० गुणो। अणंताणुबंधि० असंखे० गुणो । केवलणाण० असंखे० गुणो० । केवलदसणा० विसे० । पयलाए त्रिसे० । णिहाए विसे० । अपच्चक्खाण विसे० । पच्चक्खाण० विसे० । ओहिणाणावरण० अणंतगुणो। ओहिदसणावरण० विमे० । णिरयाउ० असंखे० गुणो। वेउव्विय० असंखे० गुणो। तेजा० विसे० । कम्मइय० विसेसा० । णिरयगइ० संखे० गुणो । अजसकित्ति० विसे० । दुगुंछा० संखे० गुणो । भय० विसे० । सोग विसे०। हस्स० विसे० । अरदि० विसे० । रदि० विसे०। णवूप्सयवेद० विसे० । दाणंतराइय० विसे । लाहंतरा० विसे० । भोगंतरा० विसे। परिभोगंतराइय० विसे० । वीरियंतराइय० विसे० । मणपज्जव० विसे० । सुदणाण० विसे । मदिणाण० विसे० अचक्खुदं० विसेसा० । चक्खुदं० विसे० । संजलण विसे० । णीचागोद० विसे० । असाद० विसे० । साद० विसेसाहिओ। एवं णिरयगईए जहण्णओ पदेसुदयदंडओ समत्तो। तिरिक्खगईए जहण्णगो पदेसुदओ मिच्छत्ते थोवो। सम्मामिच्छत्ते असंखे० गुणो । सम्मत्ते असंखे० गुणो । अणंताणुबंधि० असंखे० गुणो। केवलणाण० असंखे० नरकगतिमें मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशोदय स्तोक है। सम्यग्मिथ्यात्वका असंख्यातगुणा है । सम्यक्त्वका असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबंधिचतुष्कमें अन्यतरका असंख्यातगुणा है । केवलज्ञानावरणका असंख्यातगुणा है । केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है । प्रचलाका विशेष अधिक है । निद्राका विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरका विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरका विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणका अनन्तगुणा है । अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है । नरकायुका असंख्यातगुणा है । वैक्रियिकशरीरका असंख्यातगुणा है। तैजसशरीरका विशेष अधिक है। कार्मणशरीरका विशेष अधिक है। नरकगतिका संख्यातगुणा है । अयशकीतिका विशेष अधिक है । जुगुप्साका संख्यातगुणा है । भयका विशेष अधिक है। शोकका विशेष अधिक है। हास्यका विशेष अधिक है । अरतिका विशेष अधिक है। रतिका विशेष अधिक है। नपुंसकवेदका विशेष अधिक है। दानान्तरायका विशेष अधिक है । लाभान्तरायका विशेष अधिक है। भोगान्तरायका विशेष अधिक है । परिभोगान्तरायका विशेष अधिक है । वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है। मनःपर्ययज्ञानावरणका विशेष अधिक है । श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अचक्षुदर्शनावरणका विशष अधिक है । चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। संज्वलनचतुष्कमें अन्यतरका विशेष अधिक है। नीचगोत्रका विशेष अधिक है। असातावेदनीयका विशेष अधिक है । सातावेदनीयका विशेष अधिक है । इस प्रकार नरकगतिमें जघन्य प्रदेशोदयदण्डक समाप्त हुआ। तिर्यंचगतिमें मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशोदय स्तोक है । सम्यग्मिथ्यात्वका असंख्यातगुणा है । सम्यक्त्वका असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धिचतुष्कमें अन्यतरका असंख्यातगुणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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