SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उदयाणुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा ( ३२५ अतरउवरिमसमए बहुपदेसग्गे उदिदे एसो भुजगारो णाम । जमे हिपदेसग्गमुदिदं अनंतरउवरिमसमए तत्तो थोवदरे पदेसग्गे उदयमागदे एसो अप्पदरउदओ णाम । तत्तिए तत्तिए चेव पदेसग्गे उदयमागदे अवट्टिदउदओ णाम । अणंतरादीदसमए उदएण विणा एण्णिमुदयमागदे एसो अवत्तव्वउदओ णाम । एदेण अट्ठपदेण सामित्तं । तं जहा - मदिआवरणस्स भुजगार - अप्पदर अवट्टिदउदओ कस्स ? अण्णदरस्स । एवं सव्वकम्माणं । णवरि जासि पयडीणमवत्तव्वमत्थि तं जाणिय वत्तव्वं । एयजीवेण कालो । तं जहा - मदिआवरणस्स भुजगारउदओ केवचिरं कालादो अप्पदरउदओ होदि ? जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । haचिरं० ? जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । अवट्टिदवेदगो केवचिरं० ? जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया । सुद-मणपज्जव ओहि - केवलणाणावरणाणं मदिआवरणभंगो । (चक्खु ) अचक्खु - ओहि केवलदंसणावरणाणं पि मदिआवरणभंगो। णिद्दाए अवट्टिदवेदगो केवचिरं० ? ' जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया । भुजगार - अप्पदरवेदगो केवचिरं० ? जो प्रदेशाग्र उदयको प्राप्त है उससे अनन्तर आगे के समय में बहुत प्रदेशाग्र के उदित होनेपर यह भुजाकार प्रदेशोदय कहा जाता है । जो इस समय प्रदेशाग्र उदित है उससे अनन्तर आगे के समयमैं स्तोकतर प्रदेशाग्र के उदयको प्राप्त होनेपर यह अल्पतर प्रदेशोदय कहलाता है। उतने उतने मात्र प्रदेशाग्र के उदयको प्राप्त होनेपर अवस्थित प्रदेशोदय कहलाता है । अनन्तर वीते हुए समयमें उदयके बिना इस समय उदयको प्राप्त होनेपर यह अवक्तव्य उदय कहा जाता है । इस अर्थपदके अनुसार स्वामित्वका कथन किया जाता है । वह इस प्रकार है- मतिज्ञानावरणका भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदय किसके होता है ? वह अन्यतर जीवके होता है । इसी प्रकारसे सब सब कर्मोंके सम्बन्धमें स्वामित्वका कथन करना चाहिये । विशेष इतना है कि जिन प्रकृतियोंका अवक्तव्य प्रदेशोदय है उसका कथन जानकर करना चाहिये । एक जीवकी अपेक्षा कालकी प्ररूपणा इस प्रकार है- मतिज्ञानावरणका भुजाकार उदय कितने काल रहता है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र रहता है । उसका अल्पतर उदय कितने काल रहता है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र रहता है । उसका अवस्थितवेदक कितने काल रहता है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से संख्यात समय मात्र रहता है । श्रुतज्ञानावरण, मन:पर्ययज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण और केवलज्ञानावरणकी प्ररूपणा मतिज्ञाना - वरण के समान है | ( चक्षुदर्शनावरण ) अचक्षुदर्शनावरण, अवधिज्ञानावरण और केवलदर्शनावरणकी भी प्ररूपणा मतिज्ञानावरण के समान है । निद्राका अवस्थितवेदक कितने काल रहता है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से संख्यात समय मात्र रहता है। उसका भुजाकार और अल्पतर वेदक कितने काल * ताप्रतौ Jain Education International C मत्थित्तं ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy