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छक्खंडागमे संतकम्म
विसे। णिद्दाणिद्दाए विसे० । थोणगिद्धीए विसेसा० । मिच्छत्ते असंखे० गुणो । केवलणाण० विसे० । केवलदंसण० विसे० । अपच्चवखाण० विसे० । पच्चक्खाण० विसे। अणंताणुबंधि० विसे० । णिरयगई० अणंतगुणो । देवगई विसे०। मणुसगई० विसे० । देवाउ० असंखे० गुणो। णिरयाउ० विसे० । मणुसाउ० संखे० गुणो । उच्चागोद० असंखे० गुणो। तिरिक्खाउ० संखे० गुणो । णिरय-देव-मणुसगईण देव-णिरय-मणुस्साउआणमुच्चागोदस्स य कधमसण्णीसुदओ ? ण, असण्णिपच्छायदाणं णेरइयादीण मुवयारेण असण्णित्तब्भुवगमादो । मणुसगइपदेसोदयादो देवाउआदीणं पदेसोदयस्स कुदो असंखेज्जगुणत्तं ? ण, विलिदिए मोत्तूण पयदअसण्णिपंचिदिएसु चेव संचिददव्वग्गहणे तदविरोहादो । मणुस्साउअउक्कस्सोदयादो उच्चागोद-तिरिक्खाउआणमुक्कस्सोदयस्स कुदो असंखेज्जगुणत्तं ? ण, बंधगद्धाए असंखेज्जगुणत्तेण च आवलियाए असंखेज्जदिभागस्स अंतोमुहुत्तत्तमसिद्धं, एदम्हादो चेव सुत्तादो तस्स तब्भावसिद्धीदो।
प्रचलाका विशेष अधिक है । निद्रानिद्राका विशेष अधिक है । स्त्यानगुद्धिका विशेष अधिक है । मिथ्यात्वका असंख्यातगुणा है । केवलज्ञानावरणका विशेष अधिक है । केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरका विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरका विशेष अधिक है। अनन्तानुबंधिचतुष्कमें अन्यतरका विशेष अधिक है। नरकगतिका अनन्तगुणा है । देवगतिका विशेष अधिक है। मनुष्यगतिका विशेष अधिक है। देवायुका असंख्यातगुणा है । नारकायुका अिशेष अधिक है । मनुष्यायुका संख्यातगुणा है। उच्चगोत्रका असंख्यातगुणा है । तिर्यगायुका संख्यातगुणा है ।
शंका- नरकगति, देवगति, मनुष्यगति, देवायु, नारकायु, मनुष्यायु और उच्चगोत्रका उदय असंज्ञी जीवोंमें कैसे सम्भव है ?
समाधान- नही, क्योंकि, असंज्ञी जीवोंमेंसे पीछे आये हुए नारकी आदिकोंको उपचारसे असंज्ञी स्वीकार किया गया है।
___ शंका- मनुष्यगतिके प्रदेशोदयकी अपेक्षा देवायु आदिकोंका प्रदेशोदय असंख्यातगुणा कसे हो सकता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, विकलेन्द्रियोंको छोडकर प्रकृत असंज्ञी पंचेन्द्रियोंमें ही संचित द्रव्यका ग्रहण करनेपर उसमें कोई विरोध नहीं है।
शंका- मनुष्यायुके उत्कृष्ट प्रदेशोदयसे उच्चगोत्र और तिर्यंचआयुका उत्कृष्ट प्रदेशोदय असंख्यातगुणा कैसे है ?
__ समाधान- नहीं, बन्धककालके असंख्यातगुणे होनेसे भी आवलीके असंख्यातवें भागके अन्तर्मुहूर्तता असिद्ध है, इसी सूत्रसे ही उसके असंख्यातगुणत्व सिद्ध है।
० अप्रतौ ‘णिरयगई०' इति पाठः। * अप्रतौ ‘णेरयदीण', काप्रती 'णिरयादीण'.
ताप्रती 'णेरयादीण' इति पाठः। *ताप्रती 'असंखेज्जगुणतं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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