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________________ उदयाणुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा ( ३१५ गिद्दाए विसे० । मिच्छत्ते असंखे० गुणो। अणंताणुबंधि० संखे० गुणो। अपच्चक्खाणकसाए असंखे० गुणो। पच्चक्खाणकसाए विसे० । केवलणाण० असंखे० गुणो। केवलदसण. विसे०। सम्मत्ते असंख० गुणो। देवाउ० अणंतगुणो। ओहिणाणावरण. संखे० गुणो। ओहिदंसणाव. विसे० । अजसगित्ति० असंखे० गुणो। इथिवेद० संखे० गुणो। भय-दुगुंछा० असंखे० गुणो । सोग० विसे० । हस्स विसे० । अरदि० विसे । रदि० विसे०। पुरिसवेद० असंखे० गुणो। कोहसंजलगाए असंखे० गुणो । माणस्स असंखे० गुणो। मायस्स असंखे० गुणो। लोभस्स असंखे० गुणो। वेउव्वियसरीर० असंखे० गुणो। तेजा० विसे० । कम्मइय० विसे० । देवगई० संखे० गुणो। जसगित्ति० विसे० । दाणंतराइय० संखे० गुणो। लाहंतराइय०. विसे० । भोगंतराइय० विसे । परिभोगंतरा० विसे० । विरियंतराइय० विसे० । मणपज्जव० विसे० । सुदणाण० विसे०। मदिणाण० विसे०। अचक्खुदं० विसे० । चक्खदं० विसे० । उच्चागोद० विसेसाहिओ । असाद० विसे० । साद० विले० । एवं देवगदीए उक्कस्सओ पदेसुदयदंडओ समत्तो। असण्णीसु उक्कस्सओ पदेसुदओ पयलाए थोवो। णिहाए विसे० । पयलापयलाए निद्राका विशेष अधिक है । मिथ्यात्वका असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धी कषायोंमें अन्यतरका संख्यातगुणा है । अप्रत्याख्यानावरणमें अन्यतरका असंख्यातगुणा है। प्रत्याख्यानावरण कषायमें अन्यतरका विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरणका असंख्यातगुणा है। केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है। सम्यक्त्वका असंख्यातगुणा है। देवायुका अनन्तगुणा है। अवधिज्ञानावरणका संख्यातगुणा है। अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है। अयशकीतिका असंख्यातगुणा है । स्त्रीवेदका संख्यातगुणा है । भय व जुगुप्साका संख्यातगुणा है। शोकका विशेष अधिक है। हास्यका विशेष अधिक है। अरतिका विशेष अधिक है। रतिका विशेष अधिक है । पुरुषवेदका संख्यातगुणा है । संज्वलनक्रोधका असंख्यातगुणा है । संज्वलनमानका असंख्यातगुणा है। संज्वलनमायाका असंख्यातगुणा है। संज्वलनलोभका असंख्यातगुणा है। वैक्रियिकशरीरका असंख्यातगुणा है। तैजसशरीरका विशेष अधिक है। कार्मणशरीरका विशेष अधिक है। देवगतिका संख्यातगुणा है। यशकीर्तिका विशेष अधिक है। दानान्तरायका संख्यातगुणा है। लाभान्तरायका विशेष अधिक है। भोगान्तरायका विशेष अधिक है। परिभोगान्तरायका विशेष अधिक है। वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है। मनःपर्ययज्ञानावरणा विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावर विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। उच्चगोत्रका विशेष अधिक है। असातावेदनीयका विशेष अधिक है । सातावेदनीयका विशेष अधिक है। इस प्रकार देवगतिमें उत्कृष्ट प्रदेश-उदय दण्डक समाप्त हुआ। असंज्ञियोंमें प्रचलाका उत्कृष्ट प्रदेश उदय स्तोक है । निद्राका विशेष अधिक है । प्रचला * अप्रतौ 'संखे० गुणो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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