SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१४) छक्खंडागमे संतकम्म विसे० । अपच्चक्खाणकसाएसु असंखे० गुणो। पच्चक्खाणकसाएसु विसे० । पयलाए असंखे० गुणो । णिद्दाए विसे० । सम्मत्ते असंखे० गुणो। केवलणाण० संखे० गुणो । केवलदसण विसे० । मणुस्साउ० अणंतगुणो। वेउव्वियसरीरणामाए असंखे० गुणो। आहारसरीरस्स विसे । अजसकित्तीए असंखे० गुणो । णोचागोदे संखे० गुणो। भय-दुगुंछा० असंखे० गुणो। हस्स-सोग विसेसा० । रदि-अरदीसु विसे० । इत्थिवेद० असंखे० गुणो । णवंसयवेद० विसे० । पुरिसवेद० असंखे० गुणो। कोधसंजलणाए असंखे० गुणो । माण० असंखे० गुणो । माया० असंखे० गुणो। ओरालियसरीरणामाए असंखे० गुणो । तेजासरीर० विसे० । कम्मइय० विसे० । मणुसगइ० असंखे० गुणो । दाणंतराइय० संखे० गुणो। लाहंतरा० विसे० । भोगतराइय० विसे० । परिभोगंतराइय० विसे० । वीरियंतराइय० विसे० । ओहिणाण० विसे० । मणपज्जव० विसे० । ओहिदसण. विसे० । सुदणाण. विसे० । मदिणाण. विसे० । अचक्खु० विसे० । चक्खु० विसे० । जसकित्ति० विसे० । उच्चागोदे विसे० । लोहसंजलणाए विसे । सादासादाणं विसे । एवं मणुसगदीए उक्कस्सपदेसउदओ समत्तो। देवगदीए उक्कस्सओ पदेसउदओ सम्मामिच्छत्ते थोवो । पयलाए संखे० गुणो । अन्यतरका असंख्यातगुणा है । प्रत्याख्यानावरण कषायोंमें अन्यतरका विशेष अधिक है। प्रचलाका असंख्यातगुणा है । निद्राका विशेष अधिक है। सम्यक्त्वका असंख्यातगुणा है। केवलज्ञानावरणका संख्यातगुणा है । केकलदर्शनावरणका विशेष अधिक है। मनुष्यायुका अनन्तगुणा है । वैक्रियिकशरीर नामकर्मका असंख्यातगुणा है । आहारशरीरका विशेष अधिक है। अयशकीर्तिका असंख्यातगुणा है । नीचगोत्रका संख्यातगुणा है। भय और जुगुप्साका असंख्यातगुणा है । हास्य व शोकका विशेष अधिक है। रति व अरतिमें विशेष अधिक है। स्त्रीवेदक असंख्यातगुणा है । नपुंसकवेदका विशेष अधिक है। पुरुषवेदका असंख्यातगुणा है। संज्वलनक्रोधका असंख्यातगुणा है । संज्वलनमानका असंख्यातगुणा है । संज्वलनमायाका असंख्यातगुणा है । औदारिकशरीर नामकर्मका असंख्यातगुणा है । तैजसशरीर नामकर्मका विशेष अधिक है । कार्मणशरीर नामकर्मका विशेष अधिक है। मनुष्यगति नामकर्मका असंख्यातगुणा है । दानान्तरायका संख्यातगुणा है । लाभान्तरायका विशेष अधिक है । भोगान्तरायका विशेष अधिक है। परिभोगान्त रायका विशेष अधिक है । वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है । अवधिज्ञानावरणका विशेष अधिक है। मनःपर्ययज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है । श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है । मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अचक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। यशकीर्तिका विशेष अधिक है। उच्चगोत्रका विशेष अधिक है । संज्वलनलोभका विशेष अधिक है। साता व असाता वेदनीयका विशेष अधिक है। इस प्रकार मनुष्यगतिमें उत्कृष्ट प्रदेश-उदय समाप्त हुआ। देवगतिमें सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेश उदय स्तोक है । प्रचलाका संख्यातगुणा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy