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________________ उदयानुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा ( ३१३ गिद्धीए विसे० । मिच्छत्ते असंखे० गुणो० । अनंताणुबंधी० संखे० गुणो । सम्मत्ते असंखे० गुणो । केवलणाण० संखे० गुणो । केवलदंसण १० विसे० । अपच्चदखाण० विसे० । पच्चक्खाण ० विसे० । तिरिक्खाउ० अनंतगुणो । वेउव्वियसरीर० असंखे ० गुणो । ओरालिय सरीर० असंखे० गुगो | तेजा० विसे० । कम्मइय० विसे०। तिरिक्खइ० संखे० गुणो । जसकित्ति अजसकित्तीणं उदओ तुल्लो विसेसाहिओ । इत्थवेद ० संखे० गुणो । दाणंतराइय विसे० । लाहंतराइय० विसे० । भोगंतराइय० विसे० । परिभोगंतरा ० विसे० । विरियंतरा० विसे० । भय-दुगंछा० विसे० । हस्स - सोग० विसे० ० । रदि-अरदि० विसे० । ओहिणाण० विसे० । मणपज्जव ० विसे० । ओहिदंसण विसे० । सुदणाण० विसे० । मदिणाण० विसे० । अचक्खुदं० विसे० । चक्खु ० विसे० । संजलण० विसे० । उच्च णीच० उदओ तुल्लो विसे० । सादासादाणं विसे० । तिरिक्खजोणिणीसु उक्कस्सओ पदेसुदयदंडओ समत्तो । 2 मईए उक्कसओ पदेसुदओ मिच्छत्ते थोवो । सम्मामिच्छत्ते विसे० । पयलापयला० संखे० गुणो । णिद्दाणिद्दाए विसे० । थीणगिद्धीए विसे० । अनंताणुबंधीणं I विशेष अधिक है । स्त्यानगुद्धिका विशेष अधिक है । मिथ्यात्वका असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धिचतुष्क में अन्यतरका संख्यातगुणा है । सम्यक्त्वका असंख्यातगुणा है । केवलज्ञानावरणका संख्यातगुणा है । केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क में अन्यतरका विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरणचतुष्क में अन्यतरका विशेष अधिक है । तिर्यगायुका अनन्तगुणा है । वैक्रियिकशरीरका असंख्यातगुणा है । औदारिकशरीरका असंख्यातगुणा है । तं सशरीरका विशेष अधिक है । कार्मणशरीरका विशेष अधिक है । तिर्यग्गतिका संख्यातगुणा है । यशकीर्ति और अयशकीर्तिका उदय तुल्य व विशेष अधिक हैं । स्त्रीवेदका संख्यातगुणा है । दानान्तरायका विशेष अधिक है । लाभान्तरायका विशेष अधिक है । भोगान्तरायका विशेष अधिक है । परिभोगान्तरायका विशेष अधिक है । वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है । भय और जुगुप्साका विशेष अधिक है । हास्य व शोकका विशेष अधिक है । रति व अरतिका विशेष अधिक है । अवधिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । मन:पर्ययज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है । श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है । मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अचक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है । चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है । संज्वलनचतुष्क में अन्यतरका विशेष अधिक है । उच्च व नीच गोत्रका उदय तुल्य व विशेष अधिक है । साता व असाता वेदनीयका विशेष अधिक है । तिर्यंच योनिमतियों में उत्कृष्ट प्रदेश उदय- दण्डक समाप्त हुआ । मनुष्यगति में मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेश उदय स्तोक है । सम्यग्मिथ्यात्व में विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलाका संख्यातगुणा है । निद्रानिद्राका विशेष अधिक है । स्त्यानगृद्धिका विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी कषायों का विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरण कषायों में तातो 'अनंताणुबंधी ० संखे० गुणो । केवलदंसण०' इति पाठ: । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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