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________________ ३१२ ) छक्खंडागमे संतकम्म विसे। मिच्छत्ते असंखे० गुणो। अणंताणुबंधि० संखे० गुणो। केवलणाणावरण असंखे० गुणो। केवलदसणाव० विसे० । अपच्चक्खाणावर० विसे० । पच्चक्खाण० विसे० । सम्मत्त० असंखे० गुणो। तिरिक्खाउ० अणंतगुणो। वेउव्वियसरीर० असंखे० गुणो । अजसगित्ति० असंखे० गुणो। इत्थि-णवंसयवेद० संखे० गुणो। उच्चागोद० संखे० गुणो । ओरालियसरीर० असंखे० गुणो। तेजासरीर० विसे० । कम्मइय० विसे० । तिरिक्खगदि० संखे० गुणो। जसगित्ति० विसे । पुरिसवेद० संखे० गुणो। दाणंतरइय० विसे० । लाहंतराइय० विसे० । भोगंतराइय० विसे० । परिभोगंतराइय० विसे० । वीरियंतराइय० विसेसा० । भय-दुगुंछा० विसे० । हस्स-सोग० विसे० । रदि-अरदि० विसे० । ओहिणाणावरण. विसे० । मणपज्जव० विसेसाहिओ। ओहिदंसण० विसे० । सुदणाण० विसे० । मदिणाण० विसे० । अचक्खु० विसे० । चक्खु० विसे । संजलणाए अण्णदरिस्से विसे० । णीचागोद० विसे० । सादासाद० दो वि तुल्ला विसे० । एवं तिरिक्खगईए उक्कस्सदंडओ समत्तो। तिरिक्खजोणिणीसु उक्कस्सपदेसउदओ सम्मामिच्छत्ते थोवो। पयलाए संखे० गुणो। णिदाए विसेसाहिओ। पयलापयलाए विसे० । णिहाणिद्दाए विसे० । थीण स्त्यानगृद्धिका विशेष अधिक है। मिथ्यात्वका असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धी कषायोंमेंसे अन्यतरका संख्यातगुणा है। केवलज्ञानावरणका असंख्यातगुणा है। केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानवरणका विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरणका विशेष अधिक है। सम्यक्त्वका असंख्यातगुणा है । तिर्यगायुका अनन्तगुणा है । वैक्रियिकशरीरका असंख्यातगुणा है । अयशकीर्तिका असंख्यातगुणा है । स्त्री व नपुंसकवेदका संख्या नगुणा है । उच्चगोत्रका संख्यातगुणा है । औदारिकशरीरका असंख्यातगुणा है। तैजसशरीरका विशेष अधिक है। कार्मणशरीरका विशेष अधिक है । तिर्यग्गतिका संख्यातगुणा है । यशकीर्तिका विशेष अधिक है। पुरुषवेदका संख्यातगुणा है । दानान्तरायका विशेष अधिक है । लाभान्त रायका विशेष अधिक है । भोगान्तरायका विशेष अधिक है । परिभोगान्तरायका विशेष अधिक है । वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है । भय व जुगुप्साका विशेष अधिक है। हास्य व शोकका विशेष अधिक है। रति व अरतिका विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । मन:पर्ययज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है । श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अचक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है । संज्वलन कषायोंमेंसे अन्यतरका विशेष अधिक है । नीचगोत्रका विशेष अधिक है । साता व असाता वेदनीय दोनोंका ही तुल्य व विशेष अधिक है । इस प्रकार तिर्यग्गतिमें उत्कृष्ट दण्डक समाप्त हुआ। तिर्यंच योनिमतियोंमें सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेश उदय स्तोक है। प्रचलाका संख्यातगुणा है। निद्राका विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलाका विशेष अधिक है । निद्रानिद्राका मप्रति पाठोऽयम् । अ-का त्योः 'सम्मामिच्छत्तादो', तातो 'सम्पामिच्छतादो (तस्स ) इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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