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छक्खंडागमे संतकम्म
णिरयाउअस्स जहण्णओ पदेसउदओ कस्स ? जेण तप्पाओग्गजहण्णेहि जोगट्ठाणेहि तप्पाओग्गजहणियाए बंधगद्धाए आउअं पबद्धं, हेढिल्लोणं ट्ठिदीणं णिसेयस्स उकस्सपदं कदं, एवं बंधिदूण मदो* तेत्तीससागरोवमिएसु उववण्णो सव्वमहंतअसादोदए वट्टमाणस्त तस्स चरिमसमयणेरइयस्स: जहण्णपदेसउदओ । मणुस्साउअस्स जहण्णओ पदेसउदओ कस्स? जेण तप्पाओग्गजहण्णजोगट्टाणेहि तप्पाओग्गजहण्णबंधगद्धाए मणुस्साउअं पबद्धं हेडिल्लीणं द्विदीणं णिसेयस्स उक्कस्सपदं कदं, एवं बंधिदूण मदो तिपलिदोवमाउद्विदिओ मणुस्सो जादो, असादोदया सव्वबहुआ सव्वचिरं सादोदया वि मंदाणुभागा, तस्स तिपलिदोवमियस्स चरिमसमयतन्भवत्थस्स जहण्णओ पदेसउदओ। तिरिक्खाउअस्स मणुसाउअभंगो । देवाउअस्स वि मणुसाउअभंगो। णवरि देवेसु तेत्तीसंसागरोवमिएसु उववण्णस्स चरिमसमयतब्भवत्थस्स वत्तव्वं । णिरयगइणामाए जाव दसवस्ससहस्सिएसु उववण्णो त्ति ताव मदिआवरणभंगो। तदो दसवस्ससहस्सिएसु उववण्णेण पुणो सम्मत्तं लद्धं, अणंताणुबंधिचउक्कं विसंजोइदं, अंतोमुहुत्तावसेसे मिच्छत्तं गदो विकट्टिदाओ द्विदीओ मदो एइंदिएसु उववण्णो, तत्तो
नारकायुका जघन्य प्रदेश उदय किसके होता है ? जिसने तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानोंके
बन्ध
किया है तथा अधस्तन स्थितियों के निषेकका उत्कृष्ट पद किया है, इस प्रकार बांधकर मरणको प्राप्त हो जो तेतीस सागरोपम आयवाले नारकियोंमें उत्पन्न होता हुआ सबसे महान् असाता वेदनीयके उदयमें वर्तमान है ऐसे नारकीके अन्तिम समयमें नारकायुका जवन्य प्रदेश उदय होता है। मनुष्यायुका जघन्य प्रदेश उदय किसके होता है ? जिसने तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानोंके द्वारा तत्प्रायोग्य जघन्य बन्धककालमें मनुष्यायुका बन्ध किया है तथा अवस्तन स्थितियोंके निषेकका उत्कृष्ट पद किया है, इस प्रकार बांधकर जो मरणको प्राप्त हो तीन पल्योपम प्रमाण आयवाले मनष्योंमें उत्पन्न हआ है, जिसके असातोदय सबमें बहुत व सर्वचिर काल रहनेवाले तथा सातोदय भी मन्द अनुभागवाले हैं; उस न पल्योपम प्रमाण आयुवाले मनुष्यके तद्भवस्थ रहने के अन्तिम समयमें मनुष्यायका
प्रदेश उदय होता है। तिर्यगायुके जघन्य प्रदेश उदयकी प्ररूपणा मनष्यायके समान है। देवायुकी भी प्ररूपणा मनुष्यायुके समान है। विशेष इतना है कि तेतीस सागरोपम आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हुए उसके तद्भवस्थ रहने के अन्तिम समयमें कहना चाहिये।
नरकगति नामकर्मके जघन्य प्रदेश उदयकी प्ररूपणा ' दस हजार वर्ष प्रमाण आयुवालोंमें उत्पन्न होने ' तक मतिज्ञानारवणके समान है । तत्पश्चात् दस हजार वर्ष प्रमाण आयुवालोंमें उत्पन्न होकर फिरसे सम्यक्त्वको प्राप्त हो जिसने अनन्तानुबन्धिचतुष्कका विसंयोजन किया है, अन्तर्मुहुर्त शेष रहनेपर जो मिथ्यात्वको प्राप्त हो स्थितियोंको विकर्षित करके मरकर
तापतौ 'तदो' इति पाठः । ४ताप्रती 'महत्त ' इति पाठः। अ-ताप्रत्योः 'चारिसमए णेरइयस्स' इति पाठः। ताप्रतौ' सम्वचिरं.' इति पाठः। अप्पद्धा-जोगचियाणाऊगुस्सगठिईणते ।
उरि थोवनिसेगे चिरतिव्वासायवेईणं ।। क. प्र. ५, २८. तापतौ 'विओकडिडदाओ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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