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________________ उदयाणुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा मदो असण्णीसु उववण्णो, तत्तो अंतोमुत्तेण णेरइओ जादो, तस्स सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदस्स णिरयगइणामाए जहण्णओ पदेसउदओ* । तिरिक्खगइणामाए मदिआवरणभंगो। णवरि इगितीसवेदएसु उववज्जावेदव्वो। मणुसगइणामाए जाव एइंदिएसु उववण्णो त्ति ताव मदिआवरणभंगो। तदो एइंदियभवग्गहणादो मणुस्सो जादो, सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो, तस्स मणुसगइणामाए जहण्णओ पदेसउदओ। देवगदिणामाए ओहिणाणावरणभंगो। णवरि जाधे द्विदीओ विकट्टिदाओ ताधे उत्तरसरीरं विउव्विदो, उज्जोवणामाए वेदओ, तस्स देवगदिणामाए जहण्णओ पदेसुदओ। वेउब्वियसरीरस्स* मदिआवरणभंगो। णवरि सो एइंदिओ सण्णितिरिक्खो होदूण उज्जोवुदएण उत्तरं विउविदो, जाधे द्विदीओ विकट्टिदाओ ताधे जहण्णपदेसुदओ।ओरालियसरीरणामाए जाव एइंदिएसु उववण्णो त्ति ताव मदिआवरणभंगो। पुणो एइंदिएहितो तसेसु उववज्जावेयव्वो जेसु उववण्णो तीसण्णं पयडीणं वेदओ होदि । तदो जाधे तीसं वेदयदि ताधे ओरालियसरीरस्स जहण्णओ पदेसुदओ। चदुजादि-तेजा-कम्मइय एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुआ है, उनमें से मरकर असंज्ञियों में उत्पन्न हुआ है, पश्चात् अन्तर्मुहुर्तमें नारकी हआ है, उसके सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त होनेपर नरकगति नामकर्मका जघन्य प्रदेश उदय होता है। तिर्यग्गति नामकर्मकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। विशेष इतना है कि इकतीस सागरोपम प्रमाण आयका वेदन करनेवाले देवोंमें उत्पन्न कराना चाहिये । मनष्यगति नामकर्मकी प्ररूपणा 'एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुआ' तक मतिज्ञानावरणके समान है। पश्चात् एकेन्द्रिय भवग्रहणसे मनुष्य उत्पन्न हुआ, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, उसके मनुष्यगति नामकर्मका जघन्य प्रदेश उदय होता है। देवगति नामकर्मकी प्ररूपणा अवधिज्ञानावरणके समान है। विशेष इतना है कि जब स्थितियां विकर्षित की जाती हैं तब उत्तर शरीरकी विक्रियाको प्राप्त होता हुआ उद्योत नामकर्मका वेदक होता है, तब उसके देवगति नामकर्मका जघन्य प्रदेश उदय होता है। वैक्रियिकशरीर नामकर्मकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। विशेष इतना है कि वह एकेन्द्रिय जीव संज्ञी तिर्यंच होकर उद्योतके उदयके साथ उत्तर शरीरकी विक्रिया करता है, वह जब स्थितियोंको विकर्षित करता है तब उसके उनका जघन्य प्रदेश उदय होता है। औदारिक शरीर नामकर्मके जघन्य प्रदेश उदयकी प्ररूपणा 'एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुआ' पर्यन्त मतिज्ञानावरणके समान है। पश्चात् एकेन्द्रियोंमेंसे त्रसोंमें उत्पन्न कराना चाहिये, जिनमें उत्पन्न होकर तीस प्रकृतियोंका वेदक होता है। पश्चात् जब वह तीसंका वेदन करता है तब उसके औदारिकशरीरका जघन्य प्रदेश उदय होता है। चार जातियां, तैजस व कार्मण शरीर, तेजस * संजोयणा विजोजिय देवभवजहन्नगे अनिरुद्धे । बंधिय उक्स्स ठिई गंतूणेगिदिया सन्नी ।। सव्वलहं नरयगए निरयगई तम्मि सव्वपज्जत्ते । क. प्र. ५, २९-३०. देवगई ओहिसमा नवरि उज्जोववेयगो ताहे ।। क. प्र. ५, ३१. अ-काप्रन्यो: 'वेउव्वियसत्तयस्स' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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