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उदयानुयोगद्दारे अणुभागोदयपरूवणा
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कोह -माण - मायासंजलणाणं जहण्णट्ठिदिउदओ दोण्णिद्विदीओ। जट्ठिदिउदओ आवलिया समयाहिया । सेसाणं कम्माणं जहा जहण्णद्विदिउदीरणाए पमाणाणुगमो कदो तहा जहणट्ठिदिउदए वि कायव्वो । एवमद्धाछेदो समत्तो ।
तो सामित्तं कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ कालो अंतरं सण्णियासो अप्पा बहुअं चेदि एदाणि अणुओगद्दाराणि जहा उक्कस्सट्ठिदिउदीरणाए कदाणि तहा उक्कस्सट्ठिदिउदए वि कायव्वाणि । जहण्णट्ठिदिउदीरणादो जं किंचि णाणत्तं पि समता साधे कायव्वं । भुजगार - पदणिक्खेव वड्ढि उदओ च जहा ट्ठिदिउदीरणाए कदो तहा ट्ठिदिउदए वि कायव्वो । एवं ट्ठिदिउदओ समत्तो ।
तो अणुभागउदओ दुविहो मूलपयडिउदओ उत्तरपयडिउदओ चेदि । तत्थ मूलपयडिअणुभाग उदए चउव्वीस अणुयोगद्दाराणि परूविय पुणो भुजगार-पदणिक्खेववड्ढी परुविदासु मूलपयडिउदओ समत्तो भवदि । एत्तो उत्तरपयडिअणुभागुदए तत्थ पाणागमो जहा अणुभागुदीरणाए परुविदो तहा एत्थ वि परूवेयव्वो । पच्चयपरूवणा ठाणपरूवणा सुहासुहपरूवणा त्ति एदेहि अणुयोगद्दारेहि अणुभाग परूवणं काऊ तो सामित्तं जहा अणुभागउदीरणाए कदं तहा कायव्वं । णवरि जहण्णसामित णात्तं वत्तस्साम । तं जहा - पंचणाणावरणीय चत्तारिदंसणावरणीय-सम्मत्त
मान और मायाकी जघन्य स्थितिका उदय दो स्थिति मात्र होता है । जस्थितिउदय एक समय अधिक आवली मात्र होता है । शेष कर्मोंके प्रमाणानुगमका कथन जैसे जघन्य स्थितिउदीरणा में किया गया है वैसे ही जघन्य स्थितिउदय में भी करना चाहिये । इस प्रकार अद्धाछेद समाप्त हुआ
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यहां स्वामित्व, काल, अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर, संनिकर्ष और अल्पबहुत्व; इन अनुयोगद्वारोंका कथन जैसे उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा में किया गया है वैसेही उत्कृष्ट स्थितिउदय में भी करना चाहिये । यहां जघन्य स्थितिउदीरणाकी अपेक्षा जो कुछ विशेषता है उसे भी स्वामित्वसे सिद्ध करके कहना चाहिये । भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धिउदय जैसे स्थितिउदीरणा में किया गया है वैसे ही उसे स्थितिउदय में भी करना चाहिये । इस प्रकार स्थितिउदय समाप्त हुआ ।
यहां अनुभाग उदय दो प्रकार है- मूलप्रकृतिउदय और उत्तरप्रकृति उदय । उनमें से मूलप्रकृतिअनुभागउदय में चौबीस अनुयोगद्वारोंकी प्ररूपणा करके पश्चात् भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धिकी प्ररूपणा कर देनेपर मूलप्रकृतिअनुभाग उदय समाप्त हो जाता है । यहां उत्तरप्रकृतिअनुभागउदयमें उनमेंसे प्रमाणानुगमकी प्ररूपणा जैसे अनुभागउदीरणा में की गयी है वैसे ही यहां भी करना चाहिये । प्रत्ययप्ररूपणा, स्थानप्ररूपणा और शुभाशुभप्ररूपणा इन तीन अनुयोगद्वारोंके द्वारा अनुभागकी प्ररूपणा करके तलश्चात् स्वामित्व जैसे अनुभाग उदीरणामें किया गया है। वैसे ही उसे यहां अनुभाग उदयमें भी करना चाहिये। बिशेष इतना है कि जघन्य स्वामित्व में कुछ विशेषता है, उसे कहते हैं । यथा- पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सम्यक्त्व, तीन वेद, संज्वलन
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