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________________ २८६ ) छक्खंडागमे संतकम्म वेदयसम्माइट्ठी सव्वो । अणंताणुबंधीणं मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी वा वेदओ। अपच्चक्खाणकसायाणं असंजदो वेदओ। पच्चक्खाणवरणीयस्स को वेदओ? असंजदो संजदासंजदो वा वेदओ। तिण्णं संजलणाणं अप्पप्पणो बंधज्झवसाणेसु वट्टमाणओ। लोहसंजलणाए को वेदओ ? अण्णदरो सकसाओ। छण्णं णोकसायाणं को वेदओ ? अण्णदरो णियट्टिम्ह० वट्टमाणगो। णवरि पढमसमयदेवो णियमा साद-हस्स-रदीणं वेदगो। पढमसमयणेरइओ णियमा असाद-अरदि-सोगाणं वेदओ । पुरिसवेदं पुरिसो, इत्थिवेदमित्थी, णवंसयवेदं णवंसओ वेदेदि । ___ मणुसाउअं सव्वो मणुस्सो, णिरयाउअं सव्वो रइओ, तिरिक्खाउअं सवो तिरिक्खो, देवाउअं सव्वो देवो वेदेदि । मणुसगइं मणुस्सो, णिरयगई णेरइओ, तिरिक्खगई तिरिक्खो, देवगई देवो वेदेदि। जादिणामाणं गदिभंगो। ओरालियसरीरस्स को वेदगो ? ओरालियसरीरो सजोगो।ओरालियसरीरबंधण-संघादाणं ओरालिलयसरीरभंगो। ओरालियसरीरअंगोवंग-वेउव्विय-आहारसरीर-तदंगोवंग-बंधण-संघादाणं को वेदगो ? सत्थाणे आहारओ। सम्यग्मिथ्यादृष्टि और सम्यक्त्वका वेदन सब वेदकसन्यग्दृष्टि करते हैं। अनन्तानुबन्धी कषायोंका वेदक मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि होता है। अप्रत्याख्यानावरण कषायोंका वेदक असंयत होता है । प्रत्याख्यानावरणका वेदक कौन होता है ? उसका वेदक असंयत और संयतासंयत होता है। तीन संज्वलन कषायोंका वेदक अपने अपने बन्धाध्यवसानोंमें वर्तमान जीव होता है। संज्वलनलोभका वेदक कौन होता है ? उसका वेदक अन्यतर सकषाय जीव होता है। छह नोकषायोंका वेदक कौन होता है ? उनका वेदक निवृत्ति अवस्थामें वर्तमान ( मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरण तक ) अन्यतर जीव होता है। विशेष इतना है कि प्रथम समयवर्ती देव नियमसे सातावेदनीय, हास्य और रतिका वेदक होता है। प्रथम समयवर्ती नारकी नियमसे असातावेदनीय, अरति और शोकका वेदक होता है। पुरुषवेदका वेदन पुरुष, स्त्रीवेदका वेदन स्त्री, और नपुंसकवेदका वेदन नपुंसक करता है। मनष्यायका वेदन सब मनुष्य, नारकायका वेदन सब नारकी, तिर्यगायुका वेदन सब तिर्यंच और देवायुका वेदन सब देव करते हैं । मनुष्यगतिका वेदन मनुष्य, नरकगतिका वेदन नारकी, तिर्यग्गतिका वेदन तिर्यंच और देवगतिका वेदन देव करता है । जाति नामकर्मोके उदयकी प्ररूपणा गतिनामकर्मोंके समान है। औदारिकशरीरका वेदक कौन होता है ? उसका वेदक औदारिकशरीरसे संयुक्त सयोग जीव होता है। औदारिकशरीरबन्धन और संघातके उदयकी प्ररूपणा औदारिकशरीरके समान है। औदारिकशरीरांगोपांग, वैक्रियिकशरीर, आहारकशरीर, इन दोनोंके अंगोपांग, बन्धन और संघातका वेदक कौन होता है ? इनका वेदक स्वस्थानमें वर्तमान आहारक जीव होता है। तैजस और ४ अ-ताप्रत्यो: 'अणियट्टिम्हि ' इति पाः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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