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________________ विषय भुजाकार स्थितिउदीरणामें वृद्धिउदीरणा विषयक अल्पबहुत्व की प्ररूपणा अनुभाग उदीरणा में संज्ञा एवं सर्व उदीरणा आदि २४ अनुयोगद्वारों का नामनिर्देश अनुभाग उदीरणा में घातिसंज्ञा और स्थान संज्ञाका विवेचन प्रत्ययप्ररूपणा में कर्मप्रकृतियोंका परिणाम - प्रत्ययिक एवं भवप्रत्ययिक आदिमें विभाजन विपाकप्ररूपणा स्थानप्ररूपणा शुभाशुभप्ररूपणा अनुभागउदीरणामें उत्कृष्ट अनुभागउदीरणाविषयक स्वामित्वकी प्ररूपणा जघन्य अनुभागउदीरणाविषयक स्वामित्वकी प्ररूपणा अनुभाग उदीरणामें एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट कालप्ररूपणा अनुभागउदीरणामें एक जीवकी अपेक्षा जघन्य कालप्ररूपणा अनुभाग उदीरणा में एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तरप्ररूपणा अनुभागउदीरणामें नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य अन्तरप्ररूपणा अनुभाग उदीरणामें नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय अनुभाग उदीरणा में नाना जीवोंकी अपेक्षा कालप्ररूपणा अनुभाग उदीरणासे सम्बद्ध स्वामित्व के विवेचनमें प्रत्ययप्ररूपणा, विपाकप्ररूपणा, स्थानप्ररूपणा और शुभाशुभप्ररूपणा इन ४ अनुयोगद्वारोंका उल्लेख अनुभागउदीरणा में नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरप्ररूपणा अनुभाग उदीरणा में संनिकर्ष प्ररूपणा Jain Education International ( २१ ) पृष्ठ १७० अनुभाग उदीरणा में उत्कृष्ट अल्पबहुत्व १६४ अनुभाग उदीरणा में जघन्य अल्पबहुत्व अनुभाग भुजाकार उदीरणामें अर्थपद एक जीवकी अपेक्षा काल १७१ १७२ 13 १७४ " १८२ विषय " १९४ " २०१ " "1 " 27 " प्रदेश उदीरणा में उत्कृष्ट प्रदेशउदीरणाविषयक स्वामित्व प्रदेश उदीरणा में जघन्य प्रदेशउदीरणाविषयक स्वामित्व २५७ १७५ प्रदेश उदीरणा में एक जीवकी अपेक्षा काल, अन्तर और नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयका उल्लेख १७६ करके संनिकर्षका निरूपण | प्रदेश भुजाकार उदीरणामें अर्थपद "1 " अनुभाग उदीरणा में पदनिक्षेपप्ररूपणा वृद्धिप्ररूपणा " " १९० | प्रदेश उदीरणामें पदनिक्षेपप्ररूपणा वृद्धिउदीरणा " 17 अन्तर 23 नाना जीवों की अपेक्षा भं. वि. काल २३५. अन्तर २३६ उपशामना उपक्रमप्ररूपणा में नामादिनिक्षेपयोजना १९९ अप्रशस्त उपशामनामें अर्थपद इस अर्थपदके अनुसार स्वामित्व प्ररूपणा कालप्ररूपणा आदि उत्तरप्रकृति उपशामनाप्ररूपणा में स्वामित्व २०३ आदि For Private & Personal Use Only स्वामित्व आदि अल्पबहुत्व अल्पबहुत्व,” पृष्ठ प्रकृतिस्थानउपशामनाप्ररूपणा २०५ स्थिति उपशामनाप्ररूपणा में अद्धाच्छेद २१६ २२६ २३१ स्वामित्व आदि २०८ | अनुभाग उपशामना और प्रदेउपशामनाका २१० विवेचन २३२ २३३ २३४ २३७ २५२ २५३ २५९ २६० २६१ 11 २६४ २७३ २७५ २७६ २७७ २७८ २८० २८१ २८२ www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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