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________________ विषय प्रकृतिस्थानसमुत्कीर्तना और तद्विषयक स्वामित्व आदि भुजाकार आदि चार प्रकारकी उदीरणाओंका निरूपण पदनिक्षेप उत्तरप्रकृतिउदीरणा में एक-एकप्रकृतिउदीरणाविषयक स्वामित्वकी प्ररूपणा एक-एक प्रकृतिउदीरणा विषयक एक जीवकी अपेक्षा कालप्ररूपणा एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकी प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय नाना जीवोंकी अपेक्षा काल नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा संनिकर्ष कर्म की स्थान उदीरणाविषयक असम्भावना नरकगति के आश्रयसे नामकर्मकी स्थान उदीरणा तिर्यञ्च गतिके आश्रयसे नामकर्मकी स्थान उदीरणा मनुष्यों के आश्रयसे नामकर्मकी स्थान उदीरणा देवगतिके आश्रयसे एक-एक प्रकृति उदीरणा विषयक अल्पबहुत्व उदीरणास्थान प्ररूपणा में ज्ञानावरण दर्शनावरण एवं वेदनीयकी उदीरणास्थान प्ररूपणा मोहनी की उदीरणास्थानप्ररूपणामें स्थान समुत्कीर्तना मोहनी की उदीरणास्थानप्ररूपणा में स्वामित्व मोहनी की उदीरणास्थानप्ररूपणा में एक जीवकी अपेक्षा काल मोहनी की उदीरणास्थानप्ररूपणा में एक जीवकी अपेक्षा अन्तर मोहनी की उदीरणास्थानप्ररूपणा में नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर, संनिकर्ष और अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा Jain Education International ( २० ) पृष्ठ विषय " " भुजाकारउदीरणाप्ररूपणा में दर्शनावरण ४८ | विषयक प्ररूपणा, स्वामित्व, एक जीवकी अपेक्षा काल व अन्तर तथा नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल और अन्तरकी प्ररूपणा ५० ५३ ५४ ६१ ६८ ७२ ७३ ७४ " ८० ८१ 11 ८२ ८३ ८४ भुजाकारउदीरणा में मोहनीय विषयक प्ररूपणा स्थितिउदीरणा में मूलप्रकृतिस्थितिउदीरणा स्थितिउदीरणाके आश्रित उत्कृष्ट उत्तर प्रकृतिस्थितिउदीरणाविषयक अद्धाच्छेद जघन्य उत्तरप्रकृतिस्थितिउदीरणाविषयक अद्धाच्छेद ܐܙ उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाविषयक स्वामित्व जघन्य स्थितिउदीरणाविषयक स्वामित्व उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाविषयक एक जीवकी अपेक्षा कालप्ररूपणा जघन्य स्थितिउदीरणाविषयक एक जीवकी अपेक्षा काल प्ररूपणा उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाविषयक एक जीवकी अपेक्षा अन्तर जघन्य स्थितिउदीरणाविषयक एक जीवको अपेक्षा अन्तर स्थितिउदीरणा में नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय स्थितिउदीरणामें नाना जीवोंकी अपेक्षा काल और अन्तरका उल्लेख करके संनिकर्ष की प्ररूपणा स्थितिउदीरणा में अल्पबहुत्व ८४ भुजाकार स्थितिउदीरणाप्ररूपणा में स्वामित्व ८६ | का उल्लेख करके एक जीवकी अपेक्षा काल पष्ठ प्ररूपणा भुजाकार स्थितिउदीरणामें एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका उल्लेख करके नाना जीवोंकी अपेक्षा ८८ भंगविचयकी प्ररूपणा " " ९७ ९८ १०० १०१ १०३ १०४ ११० ११९ १२५ १३० १३७ १३९ १४१ १४७ १६१ ९३ | भुजाकार स्थितिउदीरणामें अल्पबहुत्व प्ररूपणा १६२ पदनिक्षेप ९६ For Private & Personal Use Only १५७ १६४ www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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