SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८४ ) छक्खंडागमे संतकम्म अणुभागविपरिणामाए अट्ठपदं- ओकड्डिदो वि उक्कड्डिदो वि अण्णपडि णीदो वि अणुभागी विपरिणामिदो होदि । एदेण अट्ठपदेण जहा अणुभागसंकमो तहा हिरवयवं अणुभागविपरिणामणा कायव्वा । पदेसविपरिणामणाए अट्ठपदं- जं पदेसग्गं णिज्जिण्णं अण्णपडि वा संकामिदं सा पदेसविपरिणामणा णाम । एदेण अट्ठपदेण जारिसो पदेससंकमो तारिसी पदेसपरिणामणा। णवरि जंणिज्जरिज्जमाणं उदएण तमदिरेगं पदेससंकमादो विपरिणामणाए । एवमुक्कमो त्ति समत्तमणुओगद्दारं । अनुभागविपरिणामनामें अर्थपद- अपकर्षणप्राप्त, उत्कर्षणप्राप्त अथवा अन्य प्रकृतिको प्राप्त कराया गया भी अनुभाग विपरिणामित होता है। इस अर्थपदके अनुसार जैसे अनुभागसंक्रन किया गया है वैसे ही पूर्णतया अनुभागविपरिणामनाको करना चाहिये । प्रदेशविपरिणामनामें अर्थपद- जो प्रदेशाग्र निर्जराको प्राप्त हुआ है अथवा अन्य प्रकृतिमें संक्रमणको प्राप्त हुआ है वह प्रदेशविपरिणामना कही जाती है। इस अर्थपदके अनुसार जैसे प्रदेशसंक्रम किया गया है वैसे ही प्रदेशविपरिणामनाको करना चाहिये । विशेष इतना है कि जो प्रदेशाग्र उदयके द्वारा निर्जीर्यमाण है वह प्रदेशसंक्रमसे विपरिणामनामें अधिक है। इस प्रकार उपक्रम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy