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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे रिपरिणामोववकमो ( २८३ उत्तरपडिविपरिणामणा त्ति । तत्थ मूलपयडिविपरिणामणा दुविहा देसविपरिणामणा सव्वविपरिणामणा चेदि । एत्थ अट्ठपदं--जासि पयडीणं देसो णिज्जरिज्जदि अधट्ठिदिगलणाए सा देसपयडिविपरिणामणा णाम । जा पयडी सव्वणिज्जराए णिज्जरिज्जदि सा सव्वविपरिणामणा णाम। एदेण अट्टपदेण मूलपयडिविपरिणामणाए सामित्तं कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ कालो अंतरं सण्णियासो विपरिणामयाणमप्पाबहुअं च णेयत्वं । भुजगारो पदणिक्खेवो वड्ढी च एत्थ णस्थि ।। उत्तरपयडिविपरिणामणाए अट्टपदं । तं जहा--णिज्जिण्णा पयडी देसेण सव्वणिज्जराए वा, अण्णपयडीए देससंकमणेण वा सन्वसंकमणेण वा जा संकमिज्जदि एसा उत्तरपयडिविपरिणामणा णाम । एदेण अट्ठपदेण सामित्तं कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ कालो अंतरं सण्णियासो विपरिणामयाणमप्पाबहुअं च कायव्वं । भुजगारो पदणिक्खेवो वड्ढी च णत्थि । पुणो पयडिठ्ठाणविपरिणामणा परूवेयव्वा । एवं पयडिविपरिणामणा समत्ता। द्विदिविपरिणामणाए अट्ठपदं--द्विदी ओवट्टिज्जमाणा वा उव्वट्टिज्जमाणावा अण्णं पर्याडं संकामिज्जमाणा वा विपरिणामिदा* होदि । एदेण अट्ठपदेण जहा ठिदिसंकमो तहा अविसेसेण द्विदिविपरिणामणा कायव्वा । विपरिणामना और उत्तरप्रकृतिविपरिणामना । उनमें मूलप्रकृतिविपरिणामना दो प्रकार है--देश विपरिणामना और सर्वविपरिणामना । यहां अर्थपद--जिन प्रकृतियोंका अधःस्थितिगलनके द्वारा एक देश निर्जराको प्राप्त होता है वह देशप्रकृतिविपरिणामना कही जाती है । जो प्रकृति सर्वनिर्जराके द्वारा निजराको प्राप्त होती है वह सर्वविपरिणामना कही जाती है । इस अर्थपदके अनुसार मूलप्रकृतिविपरिणामनाके स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर, संनिकर्ष और विपरिणामकोंके अल्पबहुत्वको भी ले जाना चाहिये। भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धि यहां नहीं हैं। उत्तरप्रकृति विपरिणामनामें अर्थपद । यथा-देशनिर्जरा अथवा सर्वनिर्जराके द्वारा निर्जीर्ण प्रकृति अथवा जो प्रकृति देशसंक्रमण या सर्वसंक्रमणके द्वारा अन्य प्रकृति में संक्रमणको प्राप्त करायी जाती है यह उत्तरप्रकृतिविपरिणामना कहलाती है । इस अर्थपदके अनुसार स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर, संनिकर्ष और विपरिणामकोंके अल्पबहुत्वको भी करना चाहिये । भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धि यहां नहीं हैं । तत्पश्चात प्रकृतिस्थानविपरिणामनाकी प्ररूपणा करना चाहिये । इस प्रकार प्रकृतिविपरिणामना समाप्त हुई । स्थितिविपरिणामनामें अर्थपद--अपवर्तमान, उद्वर्तमान अथवा अन्य प्रकृतियोंमें संक्रमण करायी जानेवाली स्थिति विपरिणामिता । स्थितिविपरिणामना ) कहलाती है। इस अर्थपदके अनुसार जैसे स्थितिसंक्रम किया गया है वैसे ही निविशेष स्वरूपसे स्थितिविपरिणामनाको भी करना चाहिये । अ-काप्रत्योः ‘उवट्टिज्जमाणा', ताप्रतौ ' ( उ ) वड्ढि जमागा' इति पाठः । * अप्रतौ ‘विपरिणामदा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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