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उवक्कमाणुयोगद्दारे उवसामणा उवक्कमो
( २७७
कस्स वि कम्मस्स पदेसग्गं सव्वमुवसंतं णाम अधवा सव्वमणुवसंतं णाम, सव्वमुवसंतं च अणुवसंतं च । एदेण पयदकरणेण सामित्तं गदं होदि ।
. एत्तो एयजीवेण कालो । तं जहा--णाणावरणस्स उवसामगो अणादिओ अपज्जवसिदो अणादिओ सपज्जवसिदो सादिओ सपज्जवसिदो वा । तत्थ जो सो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण उवड्ढपोग्गलपरियढें । सेससत्तण्णं कम्माणं णाणावरणभंगो।
एयजीवेण अंतरं जह० * एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । एवमढण्णं पि मूलपयडीणं।
णाणाजीवेहि भंगविचओ। संतकम्मिएसु पयदं--णाणारवणस्स सिया सव्वे जीवा उवसामया, सिया उवसामया च अणुवसामया च, सिया उवसामया*च अणुवसामओ च । एवं तिण्णं घादिकम्माणं तिण्णि तिण्णि भंगा । अघादीणं उवसामया अणुवसामया च णियमा अस्थि । __णाणाजीवेहि कालो-- अटण्णं पि पयडीणं उवसामया सव्वद्धा । णाणाजीवेहि णत्थि अंतरं । अप्पाबहुअं--अट्टण्णं पि उवसामया तुल्ला । भुजगारउवसामया णत्थि। पदणिक्खेव-वड्ढिउवसामणा च णत्थि । एवं मूलपयडिउवसामणा समत्ता।
उपशान्त अथवा सब अनुपशान्त नहीं होता, किन्तु सब प्रदेशाग्र उपशान्त भी होता है और अनुपशान्त भी होता है । इस प्रकृत करणके साथ स्वामित्व समाप्त होता है।
__ यहां एक जीवकी अपेक्षा कालका वर्णन करते हैं। वह इस प्रकार है-ज्ञानावरणका उपशामक जीव अनादि-अपर्यवसित. अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपयवसित होता है। उनमें जो सादि-सपर्यवसित है उसका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे उपार्थ पुद्गलपरिवर्तन मात्र है । शेष सात कर्मोकी प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान है ।
एक जीवकी अपेक्षा उसका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है । इसी प्रकारसे आठों ही मूल प्रकृतियोंके सम्बन्धमें कहना चाहिये ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविच यकी प्ररूपणा करते हैं। सत्कर्मिक जीव प्रकृत हैं-- ज्ञानावरणके कदाचित् सब जीव उपशामक, कदाचित् बहुत उपशामक व बहुत अनुपशामक, तथा कदाचित् बहुत उपशामक और एक अनुपशामक होता है । इस प्रकार से तीन घातिया कमों के तीन तीन भंग होते हैं । अघातिया कमों के बहुत उपशामक और बहुत अनुपशामक नियमसे होते हैं।
नाना जीवोंकी अपेक्षा काल--आठों ही प्रकृतियोंके उपशामक सर्व काल होते हैं । नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता । अल्पबहुत्व--आठों ही कर्मोंके उपशामक तुल्य होते हैं । भुजाकार उपशामक नहीं होते। पदनिक्षेप व वृद्धि उपशामना भी नहीं है । इस प्रकार मूलप्रकृतिउपशामना समाप्त हुई।
* अ-काप्रत्यो: 'अंतरं जहा जह• ' इति पाठः।
* प्रतिषु ' उबसामओ ' इति पाठः ।
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