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उवक्कमाणुयोगद्दारे पदेसउदीरणा
( २६९ णामकम्मरस जाओ पयडीओ सुभाओ असुभाओ वा केवली वेदयदि तासि चरिमसमयसजोगिम्हि उक्कस्सिया वड्ढी ? णामपयडीओ सुहाओ असुहाओ वा उवसंतकसाओ वेदेदि तासिमुक्कस्सिया हाणी पढमसमयदेवस्स उवसंतकसायपच्छायदस्स होदि । तासिं चेव से काले उक्कस्समवट्ठाणं । णवरि मणुसगइ-ओरालियचदुक्क-सरदुग-विहायगइदुगाणमुक्कस्सिया हाणी ओदरमाणपढमसमयसुहुमसांपराइस्स, अवट्ठाणं बिदियसमयउवसंतकसायस्स । जासि णामपयडीणं केवली उदीरओ ण होदि तासि तप्पाओग्गजहण्णविसोहीदो उक्कस्सविसोहिं गदस्स संजदस्स उक्क० वड्ढी। उक्क० विसोहीदो जहण्णविसोहि गदस्स सागारक्खएण भवक्खएण वा तस्स उक० हाणी हाणी कादूण। अवट्टियस्स* उक्कस्समवट्ठाणं । णीचागोददूभग-अणादेज्ज-अजसगित्तीणं उक्क० वड्ढी कस्स ? चरिमसमयअसंजदस्स उक्क० वड्ढी । उक्क० हाणी कस्स? (णीचागोदस्स) सम्माइट्ठिस्स सव्वुक्कस्सविसोहीदो जहण्णविसोहि गयस्स तस्स उक्कस्सिया हाणी। तस्सेव से काले उक्कस्समवढाणं । उच्चागोदस्सर उक्क० वड्ढी कस्स ? चरिमसमयसजोगिस्स । उक्कस्सिया हाणी कस्स? पढमसमयदेवस्स उवसंतकसायस्स पच्छायदस्स । तस्सेव से काले उक्कस्समवट्ठाणं। पंचण्णमंतराइयाणं मदिणाणावरणभंगो । एवमुक्कस्स
नामकर्मकी जिन शुभ अथवा अशुभ प्रकृतियोंकी वेदन केवली करते हैं उनकी उत्कृष्ट वृद्धि अंतिम समयवर्ती सयोगकेवलीके होती है। जिन शुभ-अशुभ नामप्रकृतियोंका उपशांतकषाय वेदन करता है उनकी उत्कृष्ट हानि उपशांतकषायसे पीछे आये हुए प्रथमसमयवर्ती देवके होती है। उन्हींका अनंतर काल में उसके उत्कृष्ट अवस्थान होता है। विशेष इतना है कि मनुष्यगति, औदारिकचतुष्क, स्वरद्विक और दोनों विहायोगतियोंकी उत्कृष्ट हानि श्रेणिसे उतरते हुए प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसांपरायिकके होती है ; तथा उनका उत्कृष्ट अवस्थान द्वितीय समयवर्ती उपशांतकषायके होता है। जिन नामप्रकृतियोंके केवली उदीरक नहीं होते हैं उनकी उत्कृष्ट वृद्धि तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिसे उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त हुए संयतके होती है। साकार उपयोगके क्षयसे अथवा भवके क्षयसे उत्कृष्ट विशुद्धिसे जघन्य विशुद्धिको प्राप्त हुए उक्त जीवके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है। उनकी उत्कृष्ट हानिको करके अनंतर कालमें अवस्थानको प्राप्त हुए उक्त जीवके ही उनका उत्कृष्ट अवस्थान होता है। नीचगोत्र, दुर्भग, अनादेय और अयशकीर्तिकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है? चरमसमयवर्ती असंयत जीवके उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उनकी उत्कृप्ट हानि किसके होती है? सर्वोकृष्ट विशुद्धिसे जवन्य विशुद्धिको प्राप्त हुए उक्त (नीच गोत्रवाले) सम्यग्दृष्टि जीवके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है। उसीके अनन्तर कालमें उनका उत्कृष्ट अवस्थान होता है। उच्चगोत्रकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? वह अंतिम समयवर्ती सयोगीके होती है। उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? उपशान्तकषायसे पीछे आये हुए प्रथम समयवर्ती देवके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है। उसीके अनन्तर कालमें उनका उत्कृष्ट अवस्थान होता है। पांच अन्तराय
* अ-ताप्रत्यो: 'हाणी कादूण अवट्टियस्स ' इति पाठः । ताप्रती 'णीचागोदस्स ' इति पाठः ।
अ-काप्रत्योः ‘णीचागोदस्स', ताप्रतौ ‘णीचा (उच्चा) गोदस्स ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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