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________________ २७० ) छक्खंडागमे संतकम्म सामित्तं समत्तं । ___मदिआवरणस्स जहणिया पदेसउदीरणावड्ढी कस्स? जो उक्कस्ससंकिलिट्ठो तत्तो अणंतभागेण हीणो तस्स जहणिया वड्ढी। जहणिया हाणी कस्स? दुचरिमादो संकिलेसादो जो उक्कस्ससंकिलेसं गदो तस्स जह० हाणी । एगदरत्थ अवट्ठाणं । सुद-मणपज्जव- केवलणाणावरण-चक्खु-अचक्खु-केवलदसणावरण-सादासाद-मिच्छत्तसोलसकसाय-णवणोकसायाणं मदिणाणावरणभंगो । ओहिणाण-ओहिदसणावरणाणं। पि मदिणाणावरणभंगो । णवरि देव-णेरइएसु जहण्णसामित्तं दादव्वं । पंचण्णं दंसणावरणीयाणं मदिणाणावरणभंगो । णवरि तप्पाओग्गसंकिलिछे जहण्णसामित्तं दादव्वं । णिरया उअस्स जहणिया वड्ढी कस्स? जो उक्कस्सादो सादोदयट्ठाणादो दुचरिमसादोदयट्ठाणं गदो रइओ तस्स णिरयाउअस्स जह० वड्ढी। जह० हाणी कस्स? जो दुचरिमसादोदयादो चरिमसादोदयं गदो तस्स जहणिया हाणी । एगदरत्थ अवट्ठाणं । तिरिक्ख-मणुस-देवाउआणं णिरवाउभंगो णवरि तिरिख मणुसदेवेसु-अणुक्कस्ससादोदएसु जहाकमेण सामित्तं वत्तव्वं । सव्वणामपयडीणं जहण्णवड्ढ-हाणी-अवट्ठाणाणि भण्णमाणे मदिणाणावरणभंगो। णवरि अप्पिद-अप्पिदणामपयडीणमुदयसंभवपदेसम्हि उक्कस्स-अणुक्कस्ससंकिलेसुजहण्ण कर्मोकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है । इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ। मतिज्ञानावरणकी जघन्य प्रदेशउदी रणावृद्धि किसके होती है ? उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ जो जीव उसके अनन्तवें भागसे हीन होता है उसके उसकी जघन्य वृद्धि होती है। उसकी जघन्य हानि किसके होती है ? जो द्विचरम संक्लेशसे उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होता है उसके उसकी जघन्य हानि होती है । दोनोंमेंसे किसी एकमें उसका जघन्य अवस्थान होता है । श्रुतज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी यह प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी भी उक्त प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। विशेष इतना है कि उनका जघन्य स्वामित्व देव-नारकियोमें देना चाहिये। निद्रा आदि पांच दर्शनावरणकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। विशेष इतना है कि तत्प्रायोग्य संक्लेश युक्त जीवमें उनका जघन्य स्वामित्व देना चाहिये । नारकायुकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो नारकी जीव उत्कृष्ट सातोदयस्थानसे द्विचरम सातोदयस्थानको प्राप्त हुआ है उसके नारकायुकी जघन्य वृद्धि होती है। उसकी जघन्य हानि किसके होती है ? जो द्विचरम सातोदयस्थानसे चरम सातोदयस्थानको प्राप्त हुआ है उसके उसकी जघन्य हानि होती है। दोनोंमेंसे किसी भी एकमें उसका जघन्य अवस्थान होता है। तिर्यगायु, मनुष्यायु और देवायुकी प्ररूपणा नारकायुके समान है। विशेष इतना है कि उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट सातोदय युक्त तिर्यंच, मनुष्य और देवमें यथाक्रमसे उनका जघन्य स्वामित्व कहना चाहिये । सब नामप्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि, हानि व अवस्थानकी प्ररूपणा करनेपर वह मतिज्ञानावरणके समान करना चाहिये । विशेष इतना है कि विवक्षित विवक्षित नामप्रकृतियोंके उदयकी. Hngalnelibrary.org Jain Education Internation Vates Personal SeOilmy
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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