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________________ २६६ ) छक्खंडागमे संतकम्मं सागा रक्खण तप्पा ओग्गुक्कस्ससंकिलेसं गदो तस्स उक्कस्सिया हाणी अवद्वाणं च । सम्मत्तस्स उक्क० वड्ढी कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयस्स । हाणि - अवद्वाणाणि कस्स । जो अधापमत्तसम्माइट्ठी सव्वविसुद्धो सागारक्खएण तप्पा ओग्गसंकिलेसं गदो तस्स उक्क० हाणि अवट्टाणाणि । सम्मामिच्छत्तस्स उक्क ० वड्ढी कस्स ? सम्मामिच्छाइट्ठिस्स से काले सम्मत्तं पडिवज्जिहिदि ति ट्ठियस्स | सम्मामिच्छत्त० उक्क० हाणी अवद्वाणं च कस्स? जो सम्मामिच्छाइट्ठी तप्पा ओग्गविसुद्ध परिणामक्खएण तप्पा ओग्गजहण्णविसोहीए पदिदो तस्स उक्क० हाणी अवद्वाणं च । वड्ढी वड्ढी । अताणुबंधिचक्कस्स मिच्छत्तभंगो । अपच्चक्खाणकसायाणं उक्क ० कस्स? जो असंजदसम्माइट्ठी से काले संजमं गाहदित्ति द्विदो तस्स उक्क० हाणि - अवाणाणि कस्स ? अधापमत्तसम्माइट्ठिस्स सव्वविसुद्धस्स सागा रक्खएण से काले तप्पा ओग्गजहण्ण विसोहिं गयस्स । पच्चक्खाणकसायाणं अपच्चक्खाणकसायभंगो । वरि संजदासंजदेसु परूवणा कायव्वा । संजलणाणमुक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? कोहमाण- मायाणं खवगस्स चरिमसमयवेदयस्स तस्स उक्कस्सिया वड्ढी । लोभस्स उक्क० क्षयसे तन्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ है उसके उसकी उत्कृष्ट हानि और अवस्थान होता है । सम्यक्त्व प्रकृतिकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जिसके चरम समयवर्ती अक्षीणदर्शन मोह होने में एक समय अधिक आवली मात्र शेष है उसके सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उसकी उत्कृष्ट हानि और अवस्थान किसके होता है ? जो अधःप्रवृत्त सम्यग्दृष्टि होकर साकार उपयोगके क्षयसे तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुआ है उसके उसकी उत्कृष्ट हानि ओर अवस्थान होता है । सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो अनन्तर कालमें सम्यक्त्वको प्राप्त होगा, ऐसी स्थिति में स्थित है उस सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवके उसकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि व अवस्थान किसके होता है ? जो समयमिथ्यादृष्टि जीव तत्प्रायोग्य विशुद्ध होकर परिणामक्षयसे तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिमें आ पडा है उसके उसकी उत्कृष्ट हानि व अवस्थान होता है । अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी प्ररूपणा मिथ्यात्वके समान है । अप्रत्याख्यानावरण कषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो असंयत सम्यग्दृष्टि अनन्तर कालमें संयमको प्राप्त करेगा, ऐसी अवस्था में स्थित है उसके उनकी उत्कृष्ट बृद्धि होती है । उनकी उत्कृष्ट हानि और अवस्थान किसके होता है ? जो सर्वविशुद्ध अधःप्रवृत्त सम्यग्दृष्टि साकार उपयोगके क्षयसे अनंतर कालमें तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिको प्राप्त हुआ है उसके उनकी उत्कृष्ट हानि और अवस्थान होता है। प्रत्याख्यानावरण कषायोंकी प्ररूपणा अप्रत्याख्यानावरण कषायों के समान है । विशेष इतना है कि उसकी प्ररूपणा संयतासंयत जीवों में करना चाहिये । संज्वलन कषायों ( क्रोध, मान व माया ) की उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो क्रोध, मान व मायाका क्षपक अन्तिम समयवर्ती तद्वेदक होता है उसके उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । संज्वलन लोभकी अप्रतौ 'गहिदि ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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