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________________ २५६ ) छक्खंडागमे संतकम्म आदावणामाए उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? पुढवीजीवो सव्वविसुद्धो। उज्जोवणामाए उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? वेउन्वियउत्तरसरीरो संजदो सव्वविसुद्धो। उस्सासणामाए उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? चरिमसमयउस्सासगिरोहकारओ* सजोगी। अजसगित्ति-दुभग-अणादेज्ज-णीचागोदाणं उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? सव्वविसुद्धो असंजदसम्मामिच्छाइट्ठी से काले संजमं पडिवज्जिहिदि त्ति । बेइंदिय-तीइंदिय-चरिदियजादिणामाणमुक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? जहाकमेण बेइंदिय-तीइंदिय-चरिदियसव्वविसुद्धो। एइंदिय-थावर-साहारणसरीराणमुक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि? बादरेइंदियसव्वविसुद्धो। सुहुमणामाए उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? सुहुमेइंदिय-सव्वविसुद्धो * । अपज्जत्तणामाए उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? मणुस्सो उक्कस्सियाए अपज्जत्तणिवत्तीए उववण्णो चरिमसमयतब्भवत्थो सव्वविसुद्धो। पंचण्णमंतयाइराणमुक्कस्सपदेस० को होदि? समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थो। सुस्सर-दुस्सरणामाणं उक्कस्सपदेस० को होदि ? वचिजोगस्स चरिमसमयणिरोह विशुद्धिको प्राप्त सम्यग्दृष्टि होता है। आतप नामकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? वह सर्वविशुद्ध पृथिवीकायिक जीव होता है । उद्योत नामकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? जिसने उत्तर शरीरकी विक्रिया की है ऐसा सर्वविशुद्धसंयत जीव उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक होता है। उच्छ्वास नामकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उच्छ्वासनिरोधके अन्तिम समयमें वर्तमान सयोगकेवली उसके उत्कृष्ट प्रदेशके उदीरक होते हैं। अयशकीर्ति, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक सर्वविशुद्ध असंयत सम्यग्दृष्टि होता है जो कि अनन्तर कालमें संयमको प्राप्त होगा। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जातिनामकर्मोके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उनके उत्कृष्ट प्रदेशके उदीरक यथाक्रमसे सर्वविशुद्ध द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव होते हैं। एकेन्द्रिय, स्थावर और साधारणशरीरके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? वह सर्वविशुद्ध बादर एकेन्द्रिय जीव होता है । सूक्ष्म नामकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है? वह सर्वविशुद्ध सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव होता है। अपर्याप्त नामकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? जो उत्कृष्ट अपर्याप्त निर्वृत्तिसे उत्पन्न होकर तद्भवस्थ रहने के अन्तिम समयमें वर्तमान है ऐसा सर्वविशुद्ध मनुष्य अपर्याप्तके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक होता है। पांच अन्तराय कर्मोके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? जिसके चरम समयवर्ती छद्मस्थ होने में एक समय अधिक आवली मात्र शेष रही है ऐसा जीव उनके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक होता है । सुस्वर व दुस्वर नामकर्मोंके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? वचनयोगनिरोधके अन्तिम समयमें वर्तमान सयोगकेवली उन दो प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशके उदीरक ४ अ-काप्रत्योः 'उक्कस्सासमाणाए' इनि पाठः । * अ-काप्रत्योः 'णिरोहोकारओ' . इति पाठः । * ताप्रती 'इंदिओ सव्वविसुद्धो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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