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उवक्कमाणुयोगद्दारे पदेसउदीरणा
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को होदि । जो अवस्सिओ अदुवस्सओ जादो उक्कस्सए* असादोदए वट्टमाणओ। देवाउअस्स उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? जो दसवस्ससहस्साउओ उक्कस्सएर असादोदए वट्टमाणो।
णिरयगइणामाए उक्कस्सपदेसस्स उदीरगो को होदि ? रइओ सम्माइट्ठी सम्वविसुद्धो । तिरिक्खगइणामाए उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? संजदासजदो सम्वविसुद्धो। देवगइणामाए उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? देवसम्माइट्ठी सव्वविसुद्धो । मणुसगइ-पंचिदियजादि-ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीर-तप्पाओग्गअंगोवंग-बंधण-संघाद-छसंठाण-पढमसंघडण-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-उवधादपरघाद-पसत्थापसत्थविहायगइ-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिराथिर-सुभासुभसुभग-आदेज्ज-जसगित्ति-तित्थयर-णिमिणुच्चागोदाणं उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? चरिमसमयसजोगिकेवली। वेउब्विय-आहारसरीर-वेउव्विय-आहारसरीरंगोवंग-बंधण-संघादाणमुक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? संजदो सव्वविसुद्धो।
पंचण्णं संघडणाणमुक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि । संजदो तप्पाओग्गविसुद्धो। चदुण्णमाणुपुव्वीणमुक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? तप्पाओग्गविसुद्धो सम्माइट्ठी।
जो जीव आठ वर्षका होकर उत्कृष्ट असातोदयमें वर्तमान है वह उनका उत्कृष्ट प्रदेशउदीरक होता है। देवायुका उत्कृष्ट प्रदेशउदीरक कौन होता है ? दस हजार वर्ष प्रमाण आयुवाला जो देव उत्कृष्ट असातोदयमें वर्तमान है वह देवायुका उत्कृष्ट प्रतेशउदीरक होता है ।
नरकगति नामकर्म सम्बन्धी उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक सर्वविशुद्ध नारक सम्यग्दृष्टि होता है। तिर्यग्गति नामकर्म सम्बन्धी उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक सर्वविशुद्ध संयतासंमत ( तिर्यंच ) होता है। देवगति नामकर्म सम्बन्धी उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक सर्वविशुद्ध देव सम्यग्दृष्टि होता है। मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर तथा तत्प्रायोग्य अंगो. पांग, बन्धन व संघात, छह संस्थान, प्रथम संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, आदेय, यशकीर्ति, तीर्थंकर, निर्माण और उच्चगोत्र; इनके उत्कृष्ट प्रदेशका उदी रक कौन होता है ? उनके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक चरम समयवर्ती संयोगकेवली होता है। वैक्रियिक व आहारक शरीर तथा उनके योग्य अंगोपांग, बन्धन व संघातके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उनके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक सर्वविशुद्ध संयत जीव होता है।
पांच संहननोंके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? वह तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त संयत होता है। चार आनुपूर्वियोंके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? वह तत्प्रायोग्य
प्रतिषु 'अट्ठवस्स' इति पाठः। * भ-काप्रत्योः ' असादोदएण', ताप्रतौ ' असादोएण (ण)'
इति पाठः। 8 अ-काप्रत्योः ' उक्कस्स' इति पाठः। 6 अप्रती ' उदीरणा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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