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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे पदेसउदीरणा ( २५५ को होदि । जो अवस्सिओ अदुवस्सओ जादो उक्कस्सए* असादोदए वट्टमाणओ। देवाउअस्स उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? जो दसवस्ससहस्साउओ उक्कस्सएर असादोदए वट्टमाणो। णिरयगइणामाए उक्कस्सपदेसस्स उदीरगो को होदि ? रइओ सम्माइट्ठी सम्वविसुद्धो । तिरिक्खगइणामाए उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? संजदासजदो सम्वविसुद्धो। देवगइणामाए उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? देवसम्माइट्ठी सव्वविसुद्धो । मणुसगइ-पंचिदियजादि-ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीर-तप्पाओग्गअंगोवंग-बंधण-संघाद-छसंठाण-पढमसंघडण-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-उवधादपरघाद-पसत्थापसत्थविहायगइ-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिराथिर-सुभासुभसुभग-आदेज्ज-जसगित्ति-तित्थयर-णिमिणुच्चागोदाणं उक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? चरिमसमयसजोगिकेवली। वेउब्विय-आहारसरीर-वेउव्विय-आहारसरीरंगोवंग-बंधण-संघादाणमुक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? संजदो सव्वविसुद्धो। पंचण्णं संघडणाणमुक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि । संजदो तप्पाओग्गविसुद्धो। चदुण्णमाणुपुव्वीणमुक्कस्सपदेसउदीरओ को होदि ? तप्पाओग्गविसुद्धो सम्माइट्ठी। जो जीव आठ वर्षका होकर उत्कृष्ट असातोदयमें वर्तमान है वह उनका उत्कृष्ट प्रदेशउदीरक होता है। देवायुका उत्कृष्ट प्रदेशउदीरक कौन होता है ? दस हजार वर्ष प्रमाण आयुवाला जो देव उत्कृष्ट असातोदयमें वर्तमान है वह देवायुका उत्कृष्ट प्रतेशउदीरक होता है । नरकगति नामकर्म सम्बन्धी उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक सर्वविशुद्ध नारक सम्यग्दृष्टि होता है। तिर्यग्गति नामकर्म सम्बन्धी उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक सर्वविशुद्ध संयतासंमत ( तिर्यंच ) होता है। देवगति नामकर्म सम्बन्धी उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक सर्वविशुद्ध देव सम्यग्दृष्टि होता है। मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर तथा तत्प्रायोग्य अंगो. पांग, बन्धन व संघात, छह संस्थान, प्रथम संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, आदेय, यशकीर्ति, तीर्थंकर, निर्माण और उच्चगोत्र; इनके उत्कृष्ट प्रदेशका उदी रक कौन होता है ? उनके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक चरम समयवर्ती संयोगकेवली होता है। वैक्रियिक व आहारक शरीर तथा उनके योग्य अंगोपांग, बन्धन व संघातके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उनके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक सर्वविशुद्ध संयत जीव होता है। पांच संहननोंके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? वह तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त संयत होता है। चार आनुपूर्वियोंके उत्कृष्ट प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? वह तत्प्रायोग्य प्रतिषु 'अट्ठवस्स' इति पाठः। * भ-काप्रत्योः ' असादोदएण', ताप्रतौ ' असादोएण (ण)' इति पाठः। 8 अ-काप्रत्योः ' उक्कस्स' इति पाठः। 6 अप्रती ' उदीरणा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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