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छक्खंडागमे संतकम्म हाणि-अवट्ठाणाणि दो वि तुल्लाणि विसेसाहियाणि । सुद-मणपज्जव-केवलणाणावरणकेवलदसणावरण-चक्खुदंसणावरण-णिद्दाणिद्दा-पयलापयला-थीणगिद्धि-णिद्दा-पयलासादासाद-मिच्छत्त-सोलसकसायाणं णवणोकसाय-णिरय-तिरिक्ख-मणुस-देवाउणिरयगइ-तिरिक्ख-मणुस-देवगइ-पंचजादि-ओरालिय--वेउव्विय--आहारसरीर ओरालिय-वेउव्विय-आहार-सरीरअंगोवंग-तिण्णिबंधण-संघाद-छसंठाण--छसंघडणचत्तारिआणुपुवी-उवघाद-परघाद-आदावुज्जोव-उस्सास-पसत्थापसत्थविहायगइ-तसथावर-बादर-सुहम-पज्जत्तापज्जत्त-पत्तेय?-साहारणसरीर-अथिर-असुह-अजसगित्तिदुभग-सुस्सर-दुस्सर--अणादेज्ज-णीचागोदाणं उक्कस्सपदणिक्खेवप्पाबहुअस्स मदिणाणावरणभंगो । ओहिणाणावरण-ओहिदसणावरणाणं उक्क० वड्ढी थोवा । अवट्ठाणं विसेसाहियं । हाणी विसेसाहिया। अचक्खुदंसणावरणस्स सव्वत्थोवमुक्कस्समवट्ठाणं *। हाणी अणंतगुणा । वड्ढी अणंतगुणा । पंचण्णमंतराइयागं अचक्खुदंसणावरणभंगो सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं उक्कस्सहाणि-अवट्ठाणाणि दो वि तुल्लाणि थोवाणि । उक्क० वड्ढी अणंतगुणा । तेजा-कम्मइयसरीर-पसत्थवग्ण-गंध-रस-णिधुण्हअगुरुअलहुअ-थिर-सुभ-जसगित्ति-सुभग-आदेज्ज-उच्चगोदाणं उक्कस्सिया हाणी थोवा । अवट्ठाणमणंतगुणं । उक्क० वड्ढी अणंतगुणा । अप्पसत्थवण्ण-गंध-रस-सीदउत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है। उसकी हानि और अवस्थान दोनों ही तुल्य व विशेष अधिक हैं। श्रुतज्ञानावरण, मनःपर्यज्ञायनावरण, केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, चक्षुदर्शनावरण, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा, प्रचला, साता व असाता वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, नारकायु, तिर्यगायु, मनुष्यायु, देवायु, नरकगति, तिर्यग्गति, मनुष्यगति, देवगति, पांच जातियां, औदारिक, वैक्रियिक व आहारक शरीर औदारिक, वैक्रियिक व आहारक शरीरांगोपांग; तीन बन्धन और संघात, छह संस्थान, छह संहनन, चार आनुपूर्वियां, उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस स्थावर, बादर, सूक्ष्म. पर्याप्त व अपर्याप्त, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, अस्थिर, अशुभ, अयशकीर्ति, दुर्भग सुस्वर, दुस्वर अनादेय और नीचगोत्र; इनके उत्कृष्ट-पद-निक्षेपविषयक अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है । अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उत्कृष्ट वृद्धि स्तोक है। अवस्थान उससे विशेष अधिक है । हानि विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणका उत्कृष्ट अवस्थान सबसे स्तोक है । हानि अनन्तगुणी है । वृद्धि अनन्तगुणी है। पांच अन्तरायोंकी प्ररूपणा अचक्षदर्शनावरणके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कष्ट हानि व अवस्थान दोनों ही तुल्य व स्तोक हैं। उत्कृष्ट वृद्धि अनन्तगुणी है । तैजस व कार्मण शरीर, प्रशस्त वर्ण, गन्ध व रस, स्निग्ध, उष्ण, अगरुलघ, स्थिर, शभ, यशकीर्ति सभग, आदेय और उच्चगोत्रकी उत्कष्ट हानि स्तोक है। उनका उत्कष्ट अवस्थान अनन्तगणा है। उत्कृष्ट वृद्धि अनन्तगुणी है। अप्रशस्त वर्ण, गन्ध व रस, शीत, रूक्ष, कर्कश, गुरु, मृदु और लघु; इनके उक्त
० अप्रतौ 'देवाउ वि णिरयगइ' इति पाठः। * ताप्रती ‘दुस्सर-पुस्सर-' इति पाठः ।
8 अ-काप्रत्योः 'पज्जत्तापत्तेय' इति पाठः । * अप्रतौ —-मुवाणं' इति पाठः ।
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