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उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा
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वण्ण-गंध-रस-णिद्ध-उण्ह-अगुरुअलहुअ-थिर-सुभ-णिमिणणामाणं जहण्णवड्ढि-हाणिअवट्ठाणाणि कस्स? उक्कस्ससंकिलिटुस्स। अप्पसत्थवण्ण-गंध-रस-सीद-ल्हुक्ख-अथिरअसुहणामाणं जहणिया हाणी कस्स ? चरिमसमयसजोगिस्स । जहणिया वड्ढी कस्स ? पढमसमयसुहुमसांपराइयस्स परिवदमाणयस्स । अवट्ठागं कस्स ? दुसमयउवसंतकसायस्स। कक्खड-गरुआणं जह० हाणी कस्स ? णियत्तमाणमंथे वट्टमाणयस्स। वड्ढि-अवट्ठाणाणि कस्स ? सण्णिस्स दुसमयतब्भवत्थस्स। एवं मउअ-लहुआणं । णवरि हाणी सण्णिस्स आहारयस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्स।
उस्सास-पसत्थापसत्थविहायगइ-थावर-बादर-सुहम-पज्जत्तापज्जत्त-पत्तेयसाहारण-जसगित्ति-अजसगित्ति-सुभग-दुभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज्ज-उच्चणीचागोदाणं जह० वड्ढी हाणी अवट्ठाणं वा कस्स? अण्णदरस्स अप्पिदपयडिवेदयस्स। आदाव-उज्जोवाणं विहायगइभंगो। तित्थयरस्स जहण्णवड्ढि-अवट्ठाणाणि कस्स ? सजोगिकेवलिस्स । पंचण्णमंतराइयाणं केवलणाणावरणभंगो।
एत्तो अप्पाबहुअं । तं जहा- मदिआवरणस्स सव्वत्थोवा उक्कस्सिया वड्ढी ।
अगुरुलघु, स्थिर, शुभ और निर्माण नामप्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि, हानि व अवस्थान किसके होता है ? उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि आदि उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त जीवके होती हैं। अप्रशस्त वर्ण, गन्ध व रस, शीत, रूक्ष, अस्थिर और अशुभ नामप्रकृतियोंकी जघन्य हानि किसके होती है ? वह अन्तिम समयवर्ती सयोगीके होती है। उनकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? वह श्रेणिसे गिरते हुए प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके होती है। उनका जघन्य अवस्थान किसके होता है ? द्वितीय समयवर्ती उपशान्तकषायके उनका जघन्य अवस्थान होता है। कर्कश और गुरुकी जघन्य हानि किसके होती है ? वह निवर्तमान अवस्थामें मन्थ (प्रतर ) समुद्घातमें वर्तमान केवलीके होती है। उनकी जघन्य वृद्धि और अवस्थान किसके होती है ? द्वितीय समयवर्ती तद्भवस्थ संज्ञी जीवके उनकी जघन्य वृद्धि और अवस्थान होता है। इसी प्रकारसे मृदु और लघु स्पर्श नामकर्मोकी प्ररूपणा करना चाहिये। विशेष इतना है कि उनकी हानि तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त संज्ञी आहारकके होती है।
उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपप्ति, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, उच्चगोत्र और नीचगोत्रकी जघन्य वृद्धि, हानि व अवस्थान किसके होता है ? विवक्षित प्रकृतिके वेदक अन्यतर जीवके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि आदि होती हैं। आतप और उद्योतकी प्ररूपणा विहायोगतिके समान है। तीर्थकर प्रकृतिकी जघन्य वृद्धि और अवस्थान किसके होता है ? वे सयोगकेवली होते हैं। पांच अन्तराय कर्मोंकी प्ररूपणा केवलज्ञानावरणके समान है ।
अब यहां अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की जाती है । वह इस प्रकार है- मतिज्ञानावरणकी
8 मप्रतिपाठोऽयम् । अ-का-ताप्रतिषु ' मज्झे' इति पाठः ।।
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