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________________ २४८ ) छक्खंडागमे संतकम्म ओरालियसरीरअंगोवंग-असंपत्तसेवट्टसरीरसंघडणाणं जह० वड्ढी कस्स? दुसमयबेइंदियस्स । णवरि संघडणस्स बारसवासाउदुसमयबेइंदियो सामी। ओरालियसरीरअंगोवंगस्स जहणियाए अपज्जत्तणिवत्तीए उववण्णो दुसमयबेइंदियो सामी। जहणिया हाणी कस्स? जो एसु चेव खुद्दाभवग्गहणं जीविदूण मदो एदासुर चेव द्विदीसु उववण्णो पढमसमयआहारओ पढमसमयतब्भवत्थो तस्स जह० हागी। जहण्णमवट्ठाणं कस्स? बेइंदियस्स बहुसमयपज्जत्तयस्स । वेउव्वियसरीरस्स जह० वड्ढी कस्स? बादरवाउजीवस्स बहुसमयउत्तरविउव्वियस्स। हाणि-अवट्ठाणाणि कस्स? तस्स चेव बादरवाउजीवस्स वेउव्वियसरीरेण दुसमयपज्जत्तयस्स । वेउव्वियसरीरअंगोवंगबंधण-संघादाणं वेउव्वियसरीरभंगो। आहारचउक्कस्स वेउन्वियचउक्कभंगो। पंचसंठाण-पंचसंघडणाणं जहणिया वड्ढी कस्स? जा जस्स जहणिया अणुभागउदीरणा तत्तो से काले सव्वजहणियाए वड्ढीए ड्ढिदस्स जह० वड्ढी । तेणेव हाइदस्स जहणिया हाणी । एगदरत्थ अवढाणं । चदुण्णमाणुपुवीणं जहण्णवड्ढि-हाणि-अवट्ठाणाणि कस्स? अण्णदरस्स विग्गहगदीए वट्टमाणस्स जहण्णवड्ढि-हाणि-अवट्ठाणाणि कुणंतस्स । तेजा-कम्मइयसरीर-पसत्थवृद्धि किसके हीती है ? वह द्वितीय समयवर्ती द्वीन्द्रिय जीवके होती है। विशेष इतना है कि उक्त संहननकी जघन्य वृद्धिका स्वामी बारह वर्ष प्रमाण आयु वाला द्वितीय समयवर्ती द्वीन्द्रिय होता है। औदाकिरशरीरांगोपांगकी जघन्य वृद्धिका स्वामी जघन्य अपर्याप्त निर्वत्तिसे उत्पन्न द्वितीय समयवर्ती द्वीन्द्रिय होता है। उसकी जघन्य हानि किसके होती है ? जो इनमें ही क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण जीवित रहकर मृत्युको प्राप्त हो इन्हीं स्थितियोंमें उत्पन्न हुआ है उस प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थके उसकी जघन्य हानि होती है। उसका जघन्य अवस्थान किसके होता है ? बहुसमयवर्ती पर्याप्त द्वीन्द्रियके उसका जघन्य अवस्थान होता है। वैक्रियिकशरीरकी जघन्य वृद्धि किसके होती है? वह बहुत समय उत्तर शरीरकी विक्रिया करनेवाले बादर वायुकायिक जीवके होती है । उसकी जघन्य हानि व अवस्थान किसके होता है? वे वैक्रियिकशरीरके द्वारा द्वितीय समयवर्ती पर्याप्त हुए उसी बादर वायुकायिक जीवके होते हैं। वैक्रियिकशरीरअंगोपांगबन्धन और संघातकी प्ररूपणा वैक्रियिकशरीरके समान है। आहारकचतुष्ककी प्ररूपणा वैक्रियिकचतुष्कके समान है। पांच संस्थानों और पांच संहननोंकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो जिसकी जघन्य अनुभागउदीरणा है उसके अनन्तर कालमें सर्वजघन्य वृद्धिके द्वारा वृद्धि गत जीवके उनकी जघन्य वृद्धि होती है। उसीसे हानिको प्राप्त हुए जीवके उनकी जघन्य हानि होती है । दोनोंमेंसे किसी एकमें उनका जघन्य अवस्थान होता है। चार आनुपूर्वियोंकी जघन्य वृद्धि, हानि व अवस्थान किसके होता है ? विग्रहगतिमें वर्तमान होकर जघन्य वृद्धि, हानि व अवस्थानको करनेवाले अन्यतरके उनकी जघन्य वृद्धि, हानि व अवस्थान होता है। तैजस व कार्मण शरीर, प्रशस्त वर्ण, गन्ध, व रस, स्निग्ध, उष्ण * अ-काप्रत्यो:'-सरीरस्ससघडणाणं', ताप्रतौ (मरीरस्स ) संघडणाण' इति पाठः। 9 अ-काप्रत्योः 'वेइंदियाणि',ताप्रती 'वेइंदियाणि (वेइंदियो)' इति पाठः। ४ अप्रतो 'एदोस्' का-ताप्रत्योः 'एदेसु' इति पाठः। 4 अप्रतौ नोपलभ्यते पदमिदम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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