SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभाग उदीरणा ( २४७ परिवदमाणस्स दुसमयवेदयस्स । तिण्णं वेदाणं जहण्णमवद्वागं कस्स ? अधापवत्तसंजदस्स । छण्णोकसायाणं जह० हाणी कस्स? चरिमसमयअपुव्वखवयस्स । वड्ढी ओदरमाण विदियसमयअपुव्वस्स । अवद्वाणं सत्थाणसंजदस्स । चदुण्णमाउआणं जहण्णवड्ढि - हाणि अवद्वाणाणि कस्स ? अप्पप्पणो जहण्णियाए णिव्वत्तीए उववण्णाणं जहण्णिया वड्ढी हाणी अवद्वाणं च । णिरयगइणामाए जह० वड्ढी कस्स ? अण्णदरस्स अण्णदरिस्से पुढवीए जहण्णवड्ढीए वड्ढियस्स । हाइदस्स हाणी । एगदरत्थ अवद्वाणं । तिरिक्खगइ - मणुस गइ - देवगइपंचजादीणं च णिरयगइभंगो । ओरालियसरीरणामाए जहणिया वड्ढी कस्स ? सुहुमेइंदियस्स जहण्णियाए अपज्जत्तणिव्वत्तीए उववण्णस्स दुसमयआहारयस्स दुसमयतब्भवत्थस्स जह० वड्ढी । जह० हाणी वा कस्स ? तस्स चेव खुद्दाभवग्गहणं जीविण मदस्स सुहुमेसुववण्णस्स पढमसमयआहारयस्स जह० हाणी । जहण्णमवद्वाणं कस्स ? जहण्णियाए वड्ढीए हाणीए वा aण हाइण अवट्ठियस्स सुहुमेइंदियस्स पज्जत्तस्स । ओरालियसरीरबंधणओरालियस रीरसंघाद- हुंडसंठाण-उवघादाणं ओरालिसरीरभंगो । गिरते हुए उनके द्वितीय समयवर्ती वेदकके उनकी जघन्य हानि होती है। तीन वेदोंका जघन्य अवस्थान किसके होता है ? वह अधःप्रवृत्त संयतके होता है। छह नोकषायोंकी जघन्य हानि किसके होती है ? उनकी जघन्य हानि अन्तिम समयवर्ती अपूर्वकरण क्षपकके होती है । और उनकी जघन्य वृद्धि श्रेणिसे उतरते हुए द्वितीय समयवर्ती अपूर्वकरणके होती है। उनका जघन्य अवस्थान स्वस्थान संयतके होता है । चार आयु कर्मोंकी जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान किसके होते है ? अपनी अपनी जघन्य निर्वृत्तिसे उत्पन्न जीवोंके उनकी जघन्य वृद्धि, हानि व अवस्थान होते हैं । नरकगति नामकर्मकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? वह अन्यतर पृथिवीमें जघन्य वृद्धि वृद्धिको प्राप्त अन्यतर नारक जीवके होती है । उसीके हानिको प्राप्त होनेपर उसकी जघन्य हानि और दोनोंमेंसे किसी एक में जघन्य अवस्थान होता है । तिर्यग्गति, मनुष्यगति, देवगति और पांच जाति नामकर्मोंकी प्ररूपणा नरकगतिके समान है । औदारिकशरीर नामकर्मकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जघन्य अपर्याप्त निर्वृत्तिसे उत्पन्न होकर द्वितीय समयवर्ती आहारक और द्वितीय समयवर्ती तद्भवस्थ हुए सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके उसकी जघन्य वृद्धि होती है । उसके जघन्य हानि किसके होती है ? क्षुद्रभवग्रहण मात्र जीवित रहकर मृत्युको प्राप्त हो सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुए उपर्युक्त जीवके ही प्रथम समयवर्ती आहारक होनेपर उसकी जघन्य हानि होती हैं । उसका जघन्य अवस्थान किसके होता है ? जघन्य वृद्धि द्वारा वृद्धिको प्राप्त होकर अथवा जघन्य हानि द्वारा हानिको प्राप्त होकर अवस्थानको प्राप्त हुए सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तके उसका जघन्य अवस्थान होता है । औदारिकशरीरबन्धन, औदारिकशरीरसंघात, हुण्डकसंस्थान और उपघात नामकर्मोंकी प्ररूपणा औदारिकशरीरके समान है । औदारिकशरीरांगोपांग और असंप्राप्तासृपाटिकासंहननकी जघन्य ताप्रती 'अण्णदरस्स ' इत्येतत्पदं नास्ति । * अ-काप्रत्यो: 'हाणीए ' इति पाठ: । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy