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छक्खंडागमे संतकम्मं
गो तस्स उक्कस्सिया वड्ढी । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? जो उक्कस्समुदीरणमुदीरेण मदो एइंदिओ जादो तस्स उक्कस्सिया हाणी । तत्थेव उक्कस्समवट्ठाणं । सुदमणपज्जवणाणावरण - केवलणाण - केवलदंसणावरण- मिच्छत्त- सोलस # कसायाणं मदिआवरणभंगो। ओहिणाण ओहिंदंसणावरणाण मुक्कस्सियाए वड्ढीए मदिआवरणभंगो । वरि ओहिलंभो णत्थि । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? जो विणा ओहिलंभेण उक्कस्समुदीरणमुदीरेण मदो णेरइयो जादो तस्स उक्कस्सिया हाणी । उक्कस्समवद्वाणं कस्स ? जो उक्कस्समुदीरणमुदीरेंतो संतो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पा ओग्गजहण्णउदए पदिदो से काले तत्थेव अवट्ठिदो तस्स उकस्समवट्ठाणं ।
चक्खुदंसणावरणस्स उक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? जो तीइंदियो तप्पा ओग्गविसुद्धो संतो संकिलेस गदो तस्स उक्कस्सिया वड्ढी । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? जो तेइंदियो तप्पा ओग्गसंकि लिट्ठो संतो मदो एइंदियो जादो तस्स उक्कस्सिया हाणी । तस्सेव उक्कस्समवद्वाणं । अचक्खुदंसणावरणस्स उक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? जो पुव्वहरो मिच्छाइट्ठी तप्पा ओग्गसंकिलिट्ठो संतो मदो सुहुमेइंदिओ जहण्णखओवसमो जादो
तत्प्रायोग्य संक्लेशके उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ है उसके उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो उत्कृष्ट उदीरणापूर्वक उदीरणा करके मृत्युको प्राप्त होता हुआ एकेन्द्रिय हुआ है उसके उत्कृष्ट हानि होती है । वहींपर उत्कृष्ट अवस्थान भी होता है। श्रुतज्ञानावरण, मन:पर्ययज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, मिथ्यात्व और सोलह कषायोंकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है । अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उत्कृष्ट वृद्धिकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। विशेष इतना है कि अवधिज्ञानकी प्राप्ति सम्भव नही है । उन दोनों प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा-हानि किसके होती है ? जो जीव अवfuज्ञानकी प्राप्ति के बिना उत्कृष्ट उदीरणापूर्वक उदीरणा करके मृत्युको प्राप्त होता हुआ नारकी हुआ है उसके उत्कृष्ट हानि होती है । उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है ? जो उत्कृष्ट उदीरणा पूर्वक उदीरणा करता हुआ साकार उपयोगके क्षयसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य उदयमें आ पडता है व अनन्तर कालमें वहीं पर अवस्थित होता है उसके उत्कृष्ट अवस्थान होता है ।
चक्षुदर्शनावरणकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा-वृद्धि किसके होती है ? जो त्रीन्द्रिय जीव तत्प्रायोग्य विशुद्ध होकर संक्लेशको प्राप्त होता है उसके उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो त्रीन्द्रिय जीव तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त होकर मृत्युको प्राप्त होता हुआ एकेन्द्रिय होता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है । उसीके उत्कृष्ट अवस्थान होता है । अचक्षुदर्शनावरणकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है? जो पूर्वधर मिथ्यादृष्टि जीव तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त होता हुआ मृत्युको प्राप्त होकर जघन्य क्षयोपशमसे संयुक्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय होता है उसके
प्रतिषु मिच्छत्तस्स सोलस' इति पाठः । अ- काप्रत्यो: 'ती इंदिय-' इति पाठः । संकिलेस ' इति पाठः ।
अप्रतो
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* अ-काप्रत्योः 'भंगो' इति पाठः । मप्रतिपाछोयम् । अ-कात प्रतिषु ' उक्करसतस्स उक्कस्स उक्कस्सिया' इति पाठः ।
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