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उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा
( २३७
भागो तेसि णामकम्माणमवट्ठिद० थोवा। अवत्तन्व० असंखे० गुणा। अप्पदर० असंखे० गुणा । भुजगार० विसेसाहिया। मिच्छत्त-णवंसयवेद-तिरिक्खगइ-एइंदियजादि-थावरदूभग-अणादेज्ज-णीचागोदाणमवत्तव्व० थोवा । अवट्ठिय० अणंतगुणा । अप्पदर० असंखे० गुणा । भुजगार विसेसाहिया । अचक्खुदंसणावरण-सम्मत्त-पंचंतराइयाणं अवद्विदउदीरया थोवा । जत्थ अवत्तव्वया अत्थि ते असंखे० गुणा । भुजगार० असंखे० गुणा । अप्पदर० विसेसाहिया । सम्मामिच्छत्तस्स अवढि० थोवा । अवत्तव्व० असंखे० गुणा । अप्पदर० असंखे० गुणा । भुजगार० विसे० । सम्मामिच्छत्तगुणटाणे सत्थाणे भुजगार-अप्पदरउदीरया तुल्ला। मिच्छत्तादो सम्मामिच्छत्तं गच्छंतजीवा थोवा । सम्मत्तादो गच्छंता असंखे० गुणा । जे सम्मत्तादो सम्मामिच्छत्तं गच्छंति ते सम्मामिच्छत्तस्स भुजगारउदीरया होति । कुदो? संकिलेसत्तादो। जे मिच्छत्तादो सम्मामिच्छत्तं गच्छंति ते सम्मामिच्छत्तस्स अप्पदरउदीरया होंति, विसुज्झमाणपरिणामादो । तेण अप्पदरउदीरएहितो भुजगारउदीरयाणं विसेसाहियत्तं सिद्धं ।
पदणिक्खेवे सामित्तं । तं जहा- मदिआवरणस्स उक्क० अणुभागउदीरणवड्ढी कस्स? जो संतकम्मेण उक्कस्सउदीरणापाओग्गेण तप्पाओग्गसंकिलेसादो उक्कस्ससंकिलेसं
हैं उन नामकर्मोके अवस्थित उदीरक स्तोक हैं । अवक्तव्य उदीरक असंख्यातगुणे है। अल्पतर उदीरक असंख्यातगुणे हैं। भुजाकारउदीरक विशेष अधिक हैं। मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, स्थावर. दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके अवक्तव्य उदीरक स्तोक हैं । अवस्थिन उदीरक अनन्तगुणे हैं । अल्पतर उदीरक असंख्यातगुणे हैं। भुजाकारउदीरक विशेष अधिक हैं। अचक्षुदर्शनावरण, सम्यक्त्व और पांच अन्त रायके अवस्थित उदीरक स्तोक हैं। जहां अवक्तव्य उदीरक हैं वे असंख्यातगुणे हैं । भुजाकार उदीरक असंख्यातगुणे हैं । अल्पतर उदीरक विशेष अधिक हैं। सम्यग्मिथ्यात्वके अवस्थित उदीरक स्तोक हैं। अवक्तव्य उदीरक असंख्यातगुणे हैं । अल्पतर उदीरक असंख्यातगुणे हैं। भुजाकार उदीरक विशेष अधिक हैं। सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानमें स्वस्थान में भुजाकार और अल्पतर उदीरक दोनों तुल्य हैं । मिथ्यात्वसे सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले जीव स्तोक हैं, परन्तु सम्यक्त्वसे सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले जीव उनसे असंख्यातगुणे हैं । जो जीव सम्यक्त्वसे सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होते हैं वे सम्यग्मिथ्यात्वके भुजाकार उदीरक होते हैं, क्योंकि वे संक्लेश परिणामोंसे युक्त होते हैं । जो मिथ्यात्वसे सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होते हैं वे सम्यग्मिथ्यात्वके अल्पतर उदीरक होते है, क्योंकि, वे विशुध्यमान परिणामोंसे संयुक्त होते हैं; इसीलिये उसके अल्पतर उदीरकोंकी अपेक्षा भुजाकारउदी रकोंका विशेष अधिक होना सिद्ध हैं।
पदनिक्षेपमें स्वामित्वका कथन किया जाता है। वह इस प्रकार है- मतिज्ञानावरणकी उत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा-वृद्धि किसके होती है ? जो उत्कृष्ट उदीरणाके योग्य सत्कर्मके साथ
ताप्रती नोपलभ्यते पदमेतत् ।
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